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5 May 2024 · 1 min read

कोई होटल की बिखरी ओस में भींग रहा है

कोई होटल की बिखरी ओस में भींग रहा है
कोई खेतों की गर्मी से खुद को सींच रहा है

कोई पकवानों के जैसा फल फूल रहा है
कोई पेड़ों की शाखों पर झूल रहा है

न मिलता किसी को पेट भर खाने को है
किसी का देखकर खाने को मन ऊब रहा है

कोई खुद में ही लाचारी को महसूस कर रहा है
कोई जेबों से लापरवाही को बस फूंक रहा है

कोई भरता है मोटर से जिंदगी की उड़ानों को
कोई पग पग पे अपनो के लिए बस लड़ रहा है

कोई करता है गैरों से गिला अपनी नुमाइश का
कोई बिखरे हुए सपनो को लेकर दम तोड़ रहा है ।

!! आकाशवाणी !!

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