“लक्की”
“लक्की”
काला बदन सफेद टीका ललाट पर
स्वभाव से बहुत शर्मीला है लक्की,
उछलता, फुदकता रहता सारा दिन
टिक कर कभी नहीं बैठता है लक्की,
पूनिया परिवार बिना उदास रहता
साथ देख हमें मुस्कुराता है लक्की,
मन में आए तभी शैतानियां करता
कभी तो नुकसान करता है लक्की,
रानू, रोमी का प्यारा सा दोस्त है
स्कूल से आते ही खुश होता लक्की,
शाकाहारी लेकिन अंडे का शौकीन
दूध, दही ख़ुशी से खाता है लक्की,
ऑफिस जाए मीनू तब पीछे भागता
घर आते ही चिपक जाता है लक्की,
घूमने जाने की राज से जिद्द करता
बैठ कार में फिर इतराता है लक्की,
बीमार हुआ भयंकर लेकिन सुधर गया
हर स्थिति पर काबू पा लेता है लक्की,
शांत बैठे तब बिल्कुल अच्छा नहीं लगता
हम सबकी आंखों का तारा है लक्की।