रोजगार की तलाश में
रोज खोजता रहा, रोजगार खोजता रहा ।
बच्चों को पालने का , व्यवसाय खोजता रहा ।
कही दंगा कही अफवाह का, बाजार मिला।
कही नफरत कही करने को बेगार मिला।
पालने को खुद को बढ़ाने के लिए ।
कितने लोगों से ये , बेरोजगार मिला।
उम्र भर आस है कि दिन अच्छे होंगे
हाथ में निराशा ही क्यों हरबार मिला।।
भूखे को रोटी रोगी को दवा न मिलती
शिक्षा भी न मिली और न घर द्वार मिला ।
एक दिन का नहीं चल रहा ये सिलसिला ।
केवल वादे मिले हकीकत में न साकार मिला।
विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र