रेत पर नाम लिख मैं इरादों को सहला आयी।
तलाश ज़िन्दगी की, उस मकाम पे ले आयी,
खुद की परछाई भी, तब मेरे काम ना आयी।
घर के मोह ने, मुझे एक आशातीत दुनिया दिखाई,
कि घर तो कभी मिल ना सका, सरायों में उम्र बितायी।
जज़्बातों के तूफ़ान में, मेरी नाव कुछ यूँ डगमगायी,
कि किनारों पर लाकर, लहरों ने कश्ती डुबाई।
सुकून के पलों में भी, रूह ऐसे भटक कर आयी,
कि आवारगी ने भी हर मोड़, पर ठहर कर हँसीं उड़ाई।
मुस्कराहट मेरे लबों पे, ऐसे ठिठक कर आयी,
कि मरहम के ख्याल ने, जख्मों की टीस जगायी।
रात चाँद को, मेरे दर पे, एक दिन ले तो आयी,
पर अमावस के पर्दों ने, उसकी भी चमक चुराई।
रेत पर नाम लिख मैं, इरादों को सहला आयी,
बारिस को हुई जलन, वो सैलाब बन उस दिन छायी।
हिम्मतों का साथ मैं, फिर भी छोड़ ना पायी,
गिरकर हर बार उठी, ये देख मंज़िलें भी पास आयीं।