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4 Feb 2024 · 1 min read

फिर कोई मिलने आया है

फिर कोई मिलने आया है
आशा की उर्वरा धरा पर फिर कोई तरु मुसकाया है

साँस साँस सरगम सी गुंजित
करती हृदय सिंधु आलोड़ित
उर उपवन की कोई कलिका
नहीं रह गई अब अनमुकुलित

ज्वार हर्ष का रत्नराशि की ढेरी फिर तट पर लाया है
आशा की उर्वरा धरा पर फिर कोई तरु मुसकाया है

सुखद अलौकिक ज्योति जली है
सघन तमिस्रा आज टली है
मानस-दोष मिट गए सारे
गुण सम्वर्धक हवा चली है

रोम रोम रोमांचित होकर आलिंगन को अकुलाया है
आशा की उर्वरा धरा पर फिर कोई तरु मुसकाया है

अद्भुत साज गए हैं साजे
बजते हैं अनहद के बाजे
रंगमहल में धूमधाम है
उसमें शालिगराम विराजे

आगन्तुक ने अपना वैभव अवनीतल पर बगराया है
आशा की उर्वरा धरा पर फिर कोई तरु मुसकाया है

©®- महेश चन्द्र त्रिपाठी

Language: Hindi
Tag: गीत
67 Views
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