रिटायमेंट (शब्द चित्र)
रिटायमेंट (शब्द चित्र)
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मन रमता नहीं
तन टिकता नहीं
दूर है मंजिल
जग मिलता नहीं
सामने उस वृक्ष को देखो
कल तक हरा भरा था
तने मजबूत थे
सबको छाया देता था
सहसा मौसम बदला…
पक्षी कलरव करने लगे..
बादल भी कहने लगे
बृक्ष रिटायर हो गया..।
सामने चुनौतियां थीं
घर था/ बच्चे थे/ बीबी थी
सामने रेगिस्तान था/ और
मुझे ही पानी लाना था।
मन इतराया/ मुस्कुराते बोला..
क्यों पेंशन/ ग्रेच्युटी कहाँ गई
माना पहाड़ है/ कहाँ दुश्वार है
सब तेरा ही तो है
हाँ हाँ…सब मेरा ही है
पर कितने दिन चलेगा?
चित्र 2
उम्र मुँह बिचका रही थी
इस उम्र में कोई रिटायर
होता है क्या..
याद है, आज दफ्तर में
फेयरवैल थी..
सामने
40 साल पुराना केक था
लोग बधाई दे रहे थे..
क्यों…?
पता नहीं.?
ऐसे लगा, मानो सब कह
रहे हों…पिंड छूटा।
पारी दूसरी थी..
कौन खेलेगा..?
मैं या किस्मत…पता नहीं।
चित्र 3
आदतन मैंने सुबह
सबको गुड मॉर्निंग भेजी
कोई जवाब नहीं आया
तैयार हुआ/ बैग उठाया
पहुँच गया ऑफिस।
मगर सीट बदल चुकी थी
सरकारी उम्र ढल चुकी थी
चित्र 4
क्या करूँ…. पहला सवाल
कहाँ बैठूं….. दूसरा सवाल
एक से सौ सवाल मेरे
सीने पर थे,
और मैं.. जी मैं
यही खुद से/दर्पण से
पूछ रहा था…
क्या मैं बूढा हो गया?
क्या मैं अब थक गया?
क्या मैं बोझ बन गया?
काम करने की
क्या उम्र होती है ?
मौसम को क्या हक
पेड़ को रिटायर कर दे ???
सूर्यकांत द्विवेदी