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21 Jan 2024 · 1 min read

अयोध्या

हो रहा है प्रात सरयू-तट नया,
सूर्य से आकाश देखो सज गया।
दिशाएं कर दी विजय की घोषणा,
मिट गईं होंगी भरत की वेदना!

छिप गए तम और तम के गुप्तचर,
अबल होकर छिप गए,सबल विषधर।
‘राम का संधर्ष’ आड़े अड़ गया,
‘झूठ’ पर फिर ‘सत्य’ भारी पड़ गया।

जो हुए,सो कल हुए,अब गत हुए,
राम – द्वेषी मंथरा भी नत हुए-
“राम हैं नहीं आपके, हमारे भी पिता!
अयोध्या के फ़लक़ की सीता,सिता।”

लग रहा उत्तम नगर साकेत है,
सौंदर्य में सचमुच अतुल अद्वैत है।
खुल रहा अब इस कली का पत्र है
राममय परिवेश अब सर्वत्र है।

-ऋतुपर्ण

Language: Hindi
1 Like · 131 Views
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