राष्ट्रवादी सोच एवं गांधी जी के तीन बंदर
राष्ट्र वादी सोच एवं गांधी जी के तीन बंदर
राष्ट्र वाद –मेरे विचार से सामाजिक मूल्यों , सामाजिक दायित्वों, संवैधानिक अधिकारों के प्रयोग की नैतिक ज़िम्मेदारी , देशभक्ति , एवं मातृ भूमि के प्रति समर्पण ही राष्ट्रवाद है ।
राष्ट्रवाद का महत्व — बच्चों में बाल्यकाल से राष्ट्रवाद की नीव डालनी चाहिए , अबोध बचपन को माटी की सुगंध एवं मातृ भूमि की गोद मे खेलने का अहसास होना चाहिए । बाल्यकाल से हमें हमारे नैतिक मूल्यों जैसे सच्चाई , ईमानदारी , वफादारी एवं सम्मान , मर्यादा के प्रति सजग होना चाहिए । हमारे सामाजिक संघठन में विभिन्नता में एकता , सामाजिक समरसता , बराबरी का सबको समान अधिकार , धर्म निरपेक्षता, प्रतिनिधि के निर्वाचन का अधिकार आदि मूलभूत अधिकार शामिल हैं । जिससे हम एक सुसंस्कृत व सभ्य समाज के नागरिक बन सकें ।
राष्ट्रवाद की प्रासंगिकता — राष्ट्रवाद एक समग्र सोच है , राष्ट्रवाद की प्रासंगिकता तर्क शास्त्र के माध्यम से अत्यंत उचित प्रतीत होती है । समय , देशकाल एवं परिस्थितियों के अनुसार एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र मे धार्मिक कुरीतियों को तर्क के माध्यम से अस्वीकार एवं अमान्य करना होगा । हम प्राचीन मान्यताओं को वर्तमान समय के परिपेक्ष में ज्यों का त्यों स्वीकार नहीं कर सकते हैं । स्वार्थ परक राजनीति एवं निजी हितों के लिए रीति रिवाजों का प्रयोग निषेध करना होगा । समयानुकूल हमारे सामाजिक , धार्मिक एवं राजनीतिक स्वरूप मे परिवर्तन आवश्यक हो गया है तभी हमारे विचार व मान्यताएँ सर्वमान्य हो सकती हैं। राष्ट्रवाद मे राष्ट्र की राष्ट्रियता निहित है । अन्य देश के प्रति प्रेम प्रदर्शन हमारी राष्ट्रिय भावनाओं को ठेस पहुंचाता है , राष्ट्र विभाजन की विभीषिका की घटनाओं की याद दिलाता है । हमारा राष्ट्र बीती हुई बातों को बिसार कर आगे बढ्ने की प्रेरणा देता है , ना कि पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर पुरानी बातों एवं घटनाओं को दुहराने कि अनुमति देता है ।
संवैधानिक अधिकारों कि आड़ में लोग अभिव्यक्ति कि स्वतन्त्रता व समान अधिकारों कि दूषित व्याख्या करने लगे हैं , जो कि तार्किक आधार पर निरर्थक एवं सामाजिक दायित्वों के गैर ज़िम्मेदारी से निर्वाहन का ध्योतक है व नैतिक आधार पर व्यक्ति कि राष्ट्र निष्ठा पर प्रश्न चिन्ह लगाता है ।
सदियों से राम भारतीय समाज के प्रेरणा स्त्रोत एवं आदर्श रहे हैं । राम के स्मरण मात्र से हिन्दू समाज में स्फूर्ति , आनंद का संचार होने लगता है , राष्ट्र का नयनाभिराम रूप राष्ट्रियता को ओज , साहस एवं दृढ़ता प्रदान करता है ।
वर्ग विशेष का उत्तेजित होकर हिंसक होना यह दर्शाता है कि धार्मिकता कि आड़ मे वे कितने असहिष्णु हो जाते हैं जो देश विभिन्न धर्मों का आदर नहीं करते वे सामाजिक विसंगतियों का शिकार हो जाते हैं ।
आर्थिक स्थितिपर प्रभाव —राष्ट्र कि आर्थिक स्थिति समाज के बुनियादी ढांचे को मजबूती प्रदान करती है । राष्ट्र को स्वावलंबी बनती है । यह विकास के लिए परम आवश्यक है । काला धन राष्ट्र के विकास में बाधक है व बच्चों के नैतिक विकास में भी अवरोधक है । बच्चा बचपन से ही कालेधन कि छाया में पलता है । काला धन उसे एश्यर्व व भौतिक सुख प्रदान करता है । परंतु नैतिक रूप से उसके चरित्र का पतन होने लगता है । वह अपने को स्वावलंबी बनाने के बजाय कालेधन के स्त्रोत पर निर्भर होता है , परिणाम स्वरूप वह अनैतिक आचरण एवं अपराध कि दुनिया में प्रवेश करता है । बहुत बिरले ही होते हैं जो मान- सम्मान एवं कालेधन से सृजित अहंकार को ठोकर मार कर राष्ट्र कि मुख्य धारा मे शामिल हो पाते हैं ।
नैतिक आचरण राष्ट्रवाद का पोषक होता है , अनैतिक आचरण राष्ट्रवाद को कलंकित करताहै ।
अत : आर्थिक रूप से राष्ट्र को सशक्त बनाने के लिए स्वेच्छा से नैतिक मूल्यों को अपने जीवन में स्थान दें ।
गांधी जी के तीन बंदर – जब देश ओपनिवेशिक मानसिकता से गुजर रहा था । सामंत शाही , जमींदारी , बंधुआ मजदूरी , अंग्रेजों कि गुलामी के बीच राष्ट्रवाद का उदय एक महत्व पूर्ण घटना थी । इन समस्त बुराइयों , कुरीतियों , आर्थिक शोषण को हम जब तीन बंदरों के माध्यम से देखते हैं तो ज्ञात होता है कि राष्ट्रिय चेतना इसके विपरीत है । वह आँख , कान मुंह बंद कर बुराइयों , जुल्मों को अनदेखा करने मे विश्वास नहीं करती है बल्कि आरोपों का विरोध करती है । वर्तमान परिपेक्ष में कालेधन, भ्रष्टाचार , कानूनअव्यवस्था , धार्मिक विसंगतियों , तीन तलाक जैसी कुरीतियों , अप्रासंगिक रीति रिवाजों के खिलाफ जनता को एकजुट होकर विरोध करना होगा , तभी राष्ट्रवाद कि जड़ें हमारे राष्ट्र मे मजबूत होंगी एवं विकास कि नई इबारत लिखी जा सकेगी