रावण की मनकही
रावण की मनकही !
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काठ का पुतला जला कर खुश हो तो रहे हो
अपने मन के रावण को जला पाओ, तो जानूं !
आए सीता जब-जब कोई तुम्हारी शरण में
तो सकुशल लौटा पाओ, तो जानूं !
असत्य की स्वर्ण लंका को भेद तो रहे हो अपने बाण से
दिल को सत्य का अभेद्य किला बना पाओ, तो जानूं !
विजय का जश्न चाहे जितना भी मना लो
दुश्मन को हराकर , गले लगा पाओ, तो जानूं !
हर साल जुटते हो मेरी तबाही का मेला देखने
समाज से हर कुरीति हटा, खुशियों से आबाद करा पाओ, तो जानूं!
रावण को भूलते नहीं , हर बार फिर से लौटा लाते हो
राम को सदा के लिए जीवन में उतार पाओ, तो जानूं !
@Sugyata
#Dussehra