इस बार माधव नहीं है साथ !
स्वागतम्
अभिनंदनम् पार्थ!
संभाल लो अक्षय तूणीर
चढ़ा लो गांडीव की प्रत्यंचा।
एक नई महाभारत लड़ने को
गूंजवा दो पाञ्चजन्य चहुं ओर।
है स्वर्णबेला
रक्त लालिमा लिए।
कालयवन मुंह बाए है खड़ा
नीरनिधि दावानल सा धरकर रूप, कि
निमेष भर मिल जाए मुझको अवसर
कहीं टूट न जाए दंभ, झुक जाए विजय पताका।
कालचक्र
हुआ परिवर्तित।
कौरव नहीं है सामने इस बार
सब्सक्राइब होने को नंग धड़ंग फिरे कामिनी
शेयर लाइक का प्रलोभन कर रहा सबको शर्मसार
व्यू के लिए वायरल होने को तुम भी ना जाना कही घिर।
चक्रव्यूह
रोज नए-नए।
सकला समता सहज नहीं अब
आत्म सर्वोपरि, अपर पर गिरे शिखर
छल प्रपंच प्रगाढ़ संबंध, मृदु सरल अब कोसों दूर
अल्पमुद्रा में ईमान बेचने को, पलभर में पलट लें पाला।
इसलिए हो सजग
रहकर सतर्क। क्योंकि..
अरिदल व्यूह रचे हैं खड़े
चूक थोड़ी सी पड़ जाएगी भारी
एक अकेले इनसे पाना इतना नहीं आसान
सोच लेना,समझ लेना, इस बार माधव भी नहीं है साथ।
© सुशील कुमार ‘ नवीन ‘, हिसार
96717 26237
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार है। दो बार अकादमी सम्मान से भी सम्मानित हैं।