*राम स्वयं राष्ट्र हैं*
स्वमन को बस में रख सके,
जन जन के मन में बस सके।
जो गंभीर हो समुद्र सा,
वही तो मेरे राम है।।
महाबली हो, कांतिवान हो,
जितेंद्रिय हो, बुद्धिमान हो।
हिमालय सा जिसमें धैर्य हो,
वही तो मेरे राम है।
नितिज्ञ शोभायमान हो,
वक्ता प्रखर विद्वान हो ।
जो शत्रु नाश कर सके,
वही तो मेरे राम हैं।
शरीर सुडौल पुष्ट हो,
स्वधर्म एकनिष्ठ हो।
रक्षा करे जो दीन की,
वही तो मेरे राम है।
धर्मग्य सत्प्रतिज्ञ हो,
लोकप्रिय कृतज्ञ हो।
जो ज्ञान से पवित्र हो,
वही तो मेरे राम हैं।
वेद वेदांत तत्वज्ञ हो,
मनीषी हो मर्मज्ञ हो।
उदार हो हृदय से जो,
वही तो मेरे राम हैं।
सत्य का आगार हो,
प्रेम का संसार हो।
करुणा करें जो जीव पर,
वही तो मेरे राम हैं।
जो स्वयं ही सदाचार हो,
धर्म चिंतक विचार हो।
मर्यादा जिसका मूल हो,
वही तो मेरे राम हैं।
इक्ष्वकुवंश का पुरुष,
धारता हो जो धनुष।
है युगपुरुष जो देश का,
वही तो मेरे राम हैं।
भारत का जो दृष्टि है,
व्यक्ति नहीं समष्टि है।
जो स्वयं में ही राष्ट्र हैं
वही तो मेरे राम हैं।