राजयोग महागीता:: तू अपनेसे करले अलग निज देह को
घनाक्षरी : अध्याय १ :: गुरुक्तानुभव : पोस्ट:: १०
तू अपने से कर ले अलग निज देह को ,
तब अभी ही सुखी, बंध- मुक्त हो जायेगा ।
वीतराग होकर बन दृष्टा– साक्षी– चैतन्य ,
राम में विश्राम कर मन हर्षायेगा ।
विप्र है न और वर्ण ,निराकार असंग है,
मन में यह वॉछित भाव उपजायेगा ।
है तू कर्ता न भोक्ता ,न ही तू संहारकर्ता ,
ऐसा यदि जान लेगा , मोक्ष को पा जायेगा ।।५/ १!!
——- जितेन्द्र कमल आनंद