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12 Feb 2024 · 1 min read

जिंदगी है कोई मांगा हुआ अखबार नहीं ।

जिंदगी है कोई मांगा हुआ अखबार नहीं ।
जाईये और कहीं यहां कोई खरीददार नहीं ।
राह में कांटे बहुत है चलना बड़ा मुश्किल है यहां।
साथ चलने को मेरे कोई भी तय्यार नहीं ।
और इम्तिहा देते हुए उम्र बीत गई आधी ।
फिर भी नाकामियों का कोई वफादार नहीं ।
बेचे देते हैं यहां ईमान चंद सिक्कों के लिए ।
ले जाए यहां आपका कोई खरीददार नहीं ।।
Phool gufran

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