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10 Feb 2024 · 1 min read

पगली

मैले – कुचले
कटे – फटे थे वस्त्र
मासूम सा चेहरा
डरी – सहमी निगाहें
अजीब सी वहशत से
दो – चार थी।

बेवजह हँसती, बार – बार
इधर – उधर देखती
यहाँ – वहाँ कुछ खोजती
दुनिया की हलचल
और रंगीनी से बेजार थी।

हमने देखा उसे तो पूछा
यह “पगली” आई कहाँ से
और है कौन …?

पता चला –
इंसान की हैवानियत
व नीचता का
जीता – जागता सबूत
वो लड़की सामूहिक
बलात्कार का शिकार थी।

रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।

Language: Hindi
1 Like · 86 Views
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