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27 May 2023 · 1 min read

दफ़न हो गई मेरी ख्वाहिशे जाने कितने ही रिवाजों मैं,l

दफ़न हो गई मेरी ख्वाहिशे जाने कितने ही रिवाजों मैं,l
फर्क करते करते मंदिर की पूजा और नमाज़ मेंl
किस किस को इलज़ाम देती ,अपनी दर्द-ए-तन्हाई का ,l
दब गई ख़ामोशी, मेरे अपनों की आवाज में ll
अब तक गूंज रहे है दिल मैं मेरे, वो छलनी कर गए,l
क्या धार थी तेरे उन अल्फाज़ मैं ll
गुनाहगार तुम भी उतने ही हो, गुनाह मैं कत्ल कर,
फिर,शामिल हुए,”रत्न” के अरमानो के ज़नाजे मैं ll
बदल सकती थी,ये किस्सा-ए-तन्हाई,तन्नुम-ए-महफ़िल मैं,
मौज़ूद थे पर, वो राग न निकले तेरे साज से ll
गुप्तरत्न

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