रक्षक या भक्षक
चिंतन को बैठा चिंता में, कैसे सुधरे देश हमारो।
रक्षक ही भक्षक बन बैठे, कुर्सी थामें कर मुंह कारो।
चपरासी से लेकर अफसर, घूस मंगाते पाकर अवसर।
सर्विस चाने लाओ रुपैया, वरना घर जा बैठो भैया॥
पढ़कर डिग्री पाई अनेकों, अब उनको तुम दे दो तारो
रक्षक ही भक्षक बन बैठे •••••॥१॥
कागज पर सब काम चलाते, दिशाहीन शिक्षा दिलवाते।
शाला शिक्षकहीन पड़ी है, साक्षरता फिर भी तो बढ़ी है॥
शाला जाओ एमडीएम खाओ, खेल कूद कर समय गुजारो।
रक्षक ही भक्षक बन बैठे •••••••॥२॥
निर्वाचन नजदीक जो आया, हाथ जोड़कर नेता धाया।
वादे करके वोट है मांगी, बन गए मंत्री सुध बुध त्यागी॥
‘अंकुर’ सब नेतन की करनी, एक है जब कुछ भेद उगारो।
रक्षक ही भक्षक बन बैठे•••••••॥३॥
-✍️ निरंजन कुमार तिलक ‘अंकुर’
छतरपुर मध्यप्रदेश 9752606136