Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Jan 2022 · 5 min read

भक्त कवि स्वर्गीय श्री रविदेव_रामायणी*

भक्त कवि स्वर्गीय श्री रविदेव_रामायणी
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
भक्त कवि और कथावाचक रामपुर निवासी श्री रवि देव रामायणी द्वारा लिखित पुस्तक श्रीराम रस मंजरी 19 फरवरी 1993 को प्रकाशित हुई थी । इसमें बहुत से भजन आदि श्री रविदेव जी द्वारा लिखित तथा कुछ संग्रह किए गए हैं ।
रचनाओं का सौंदर्य देखते ही बनता है। विशेषता यह भी है कि श्री रामायणी जी इन रचनाओं को समय-समय पर अपार जनसमूह के सम्मुख बाजे पर स्वयं बजाते हुए गाकर सुनाते थे और वातावरण अद्भुत रूप से रसमय हो जाता था।
यह मेरा परम सौभाग्य रहा कि श्री रविदेव जी ने मुझे इस पुस्तक की भूमिका लिखने के योग्य समझा और यह सम्मान प्रदान किया। भक्त कवि , प्रवचनकर्ता और सुमधुर गायक स्वर्गीय श्री रविदेव रामायणी जी की स्मृति को शत-शत नमन ।
पुस्तक में लिखित मेरी भूमिका किस प्रकार थी :

भूमिका
पंडित रवि देव जी महाराज उन विभूतियों में से हैं, जिन्होंने भक्ति को अपने जीवन की साधना और भक्ति-भाव के प्रचार को अपने जीवन के ध्येय के रूप में स्वीकार किया है। श्री राम उनके आराध्य देव हैं और रामकथा का गायन उनकी आत्मा का अभिन्न अंग बन गया है। प्रवचन उनका पेशा नहीं रहा, वह उनकी सांसों में रच-बस गया गया है। संसार को और समाज को सात्विक मनोभावना तथा निष्काम कर्म की शिक्षा प्रदान करना उनकी वाणी का मुख्य ध्येय बन गया है ।
“रामायणी” उपनाम से विख्यात श्री रविदेव जी की जन्मस्थली होने का सौभाग्य रामपुर को मिला है, किन्तु कर्मस्थली तो उनका पूरा देश ही बन गया है। भारत-भर में अपनी सुमधुर वाणी और आकर्षक शैली में प्रवचन और भजन द्वारा श्री रामायणी जी राम-नाम के प्रसार में संलग्न हैं। उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली है, व्यवहार मधुर है। वह विद्वान हैं लेकिन पांडित्य-प्रदर्शन से दूर हैं।, सरल भाषा में कठिन भावों को श्रोताओं तक पहुंचाने में वह सिद्धहस्त हैं।
उनमें जनता को अपने शब्दों और शैली से आकृष्ट कर पाने की अद्भुत शक्ति है। अनेकों अवसरों पर मैंने पाया है कि श्रोताओं की भारी भीड़ को भी वह अपने सिद्धहस्त कौशल से मोहित कर लेते हैं। वह एक सफल प्रवचनकर्ता हैं और हिन्दी के प्रचलित शब्दों सहित संस्कृत के कठिन शब्दों का तालमेल बिठाने में कतई संकोच नहीं करते। प्रवचन के मध्य सस्वर भजन का समावेश उनकी प्रस्तुति में चार चाँद लगा देता है ।
मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि ईश्वर को संसार से पलायन करके पाना असंभव है। ईश्वर न पहाड़ की किसी बंद गुफा में मिल पाना संभव है, न किसी जंगल में वह मिल सकता है। गेरूए वस्त्रों को धारण करने मात्र से भी ईश्वर नहीं मिलता। वस्त्रों के परित्याग मात्र से भी ईश्वर नहीं मिल सकता । वास्तव में ईश्वर को पाने की साधना इस संसार से पलायन करके नहीं, बल्कि इसी संसार में रहकर संघर्ष करके तथा संसार के प्राणियों के साथ एकात्मता स्थापित करके, उनके जीवन और हृदय में बसे ईश्वर को पहचान कर एवं उस मनुष्य मात्र के रोम-रोम में विद्यमान ईश्वर का साक्षात्कार करके ही संभव है। ईश्वर इस संसार से अलग कहीं नहीं है। इसी समाज में और समाज में रहने वाले मनुष्यों में उसकी सत्ता विद्यमान है। इसलिये संसार में रहते हुए और संसार को सुधारते हुए ईश्वर की प्राप्ति की साधना ही सच्ची भक्ति-राह है। यह बड़ा कठिन व्रत है कि कोई संसार में रहे मगर सांसारिकता के बंधन से मुक्त रहे, समाज में रहे मगर आत्मशुद्धि की एकाकी साधना करता रहे, मनुष्यों के और वह भी सांसारिक मनुष्यों के बीच रहे और राग-द्वेष, मोह से मुक्ति पाने के लिये प्रयत्न शील रहे। जब मैं श्री रवि देव रामायणी जी महाराज के दर्शन करता हूँ तो मुझे यह देखकर बहुत सुखद आश्चर्य होता हैं कि वह मेरी उपरोक्त धारणा के अनुरूप एक सच्चे साधक की भाँति संसार में रहते हुए भी सांसारिकता से अलिप्त रहने के लिये निरन्तर प्रयासरत हैं। श्री रवि देव जी गृहस्थ हैं किन्तु जो संत प्रवृत्ति उन्होंने पाई है, वह सब प्रकार के स्तुत्य है ।
श्री पं० रवि देव रामायणी जी महाराज को एक प्रवचनकर्ता और भजन गायक के रूप में सब जानते हैं, किन्तु उनके कवि और लेखक रूप से कुछ लोग अभी भी अपरिचित हैं। प्रस्तुत पुस्तक रवि देव जी की काव्यात्मक प्रवृत्ति को तो प्रकाश में लाती ही है, साथ ही इससे उनकी भाषा, विचारों और अभिरूचियों का भी पता चलता है । इस पुस्तक में अनेक कवितायें स्वयं श्री रवि देद जी द्वारा रचित हैं तो अनेक कवितायें अन्य कवियों की उन्होंने इस उद्देश्य से संकलन में शामिल की हुई हैं कि इस तरह पाठकों को श्रेष्ठ कवितायें पढ़ने का अवसर सुलभ हो सके। इन कविताओं का मूल उद्देश्य भक्ति-रस को प्रवाहित करता है ।
भक्ति काव्य का साहित्य में विशेष महत्व है । जहाँ अन्य प्रकार का सामयिक लेखन पानी के बुलबुले की तरह या अखबारी खबर की तरह सिर्फ क्षणिक उत्तेजना जगा पाता है, वहाँ भक्ति-काव्य अपनी शांतिधर्मिता, सौम्यता और प्रेमतत्व की प्रधानता के कारण शताब्दियों तक मनुष्य मात्र के हृदय को आंदोलित करने में समर्थ सिद्ध होता है । भक्ति हमारे जीवन को अहंकार-रहित बनाती है। भक्ति हम में विनम्र भाव उत्पन्न करती है, हमें समाज रूपी भगवान के साथ एकाकार होने के लिए प्रेरित करती है। भक्ति एक प्रकार का संकल्प है, दृढ़ निश्चय है, अटल मानसिकता है। कर्म और ज्ञान अपनी मंजिल तक तभी पहुँचते हैं, जब भक्ति उनमें विद्यमान हो । आज मनुष्य की सेवाभावी, समानतावादी और एकतावादी भावना जगाने की जरूरत है और श्री रवि देव जी ने बखूबी यह काम किया भी है। तभी तो वह कहते हैं :

जो बन्दा राम के बन्दों के दुख में काम आता है
तो उस बन्दे की हर इमदाद को खुद राम आता हैं।

इसी तरह मानव-सेवा को ही सच्ची ईश्वर सेवा ही नहीं बल्कि मनुष्यों में और समस्त प्राणियों में भी ईश्वर के दर्शन कवि ने किये हैं :

जो प्राणियों में बोलता, वो ही तो राम है
जो चक्षुओं में डोलता, वो ही तो श्याम है
सर्वत्र उसके रूप को, जी भर निहारिए ।
“राम” केवल दशरथ पुत्र का नाम नहीं है, वह नाम सब प्रकार की सांसारिक वासनाओं के परित्याग का, वह नाम है सत्ता के सुख को ठुकराने का ,समाज और राष्ट्र की सेवा का व्रत धारण करने का। कवि श्री पंडित रवि देव रामायणी जी महाराज ने राम-नाम की महिमा से इस संसार को परिचित कराने और जन-जन के मन में राम-भावना को भरने का जो स्तुत्य व्रत लिया है वह सब प्रकार से सराहनीय है। निस्सन्देह व्यक्ति अपनी मृत्यु को अवश्यम्भावी जानते हुए भी इस संसार में भाँति-भाँति के छल, कपट, राग, द्वेष और मोह में डूबा रहता है और न सिर्फ इस प्रक्रिया में स्वयं दुखी रहता है बल्कि औरों को भी दुखी करता है। यह कितना बड़ा दुर्भाग्य है। काश ! सब शरीर की नश्वरता को समझें और इस धरती को परस्पर सहयोग, सद्भावना और सहृदयता का परिचय देते हुए जब तक हम सबको जीना है- सही मायने में सच्चे आनन्द को प्राप्त करते हुए जीवन जीने योग्य बनायें- यही हमारे जीवन का ध्येय है। बहुत सुन्दर और मनभावन रीति से पूज्य श्री रवि देव जी ने इन्हीं भावों को निम्न पंक्तियों में अभिव्यक्ति दी है, जो सदैव पठनीय ही नहीं, मननीय भी हैं:
जग की माया में फंसकर ‘रवि’ जगत पिता को भूल गया
कंचन और कामिनी पाकर थोथे मद में फूल गया
मूरख अब भी झोली भर ले, दो अक्षर के नाम से ।
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

1 Like · 893 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Mahendra Narayan
Be happy with the little that you have, there are people wit
Be happy with the little that you have, there are people wit
पूर्वार्थ
आश पराई छोड़ दो,
आश पराई छोड़ दो,
Satish Srijan
मैंने इन आंखों से ज़माने को संभालते देखा है
मैंने इन आंखों से ज़माने को संभालते देखा है
Phool gufran
अनंतनाग में शहीद हुए
अनंतनाग में शहीद हुए
Harminder Kaur
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Jitendra Kumar Noor
बावरी
बावरी
पंकज पाण्डेय सावर्ण्य
बस इतनी सी अभिलाषा मेरी
बस इतनी सी अभिलाषा मेरी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
दानी
दानी
Dr. Pradeep Kumar Sharma
2515.पूर्णिका
2515.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
ना जाने क्यों...?
ना जाने क्यों...?
भवेश
गरम समोसा खा रहा , पूरा हिंदुस्तान(कुंडलिया)
गरम समोसा खा रहा , पूरा हिंदुस्तान(कुंडलिया)
Ravi Prakash
शराब खान में
शराब खान में
DR. Kaushal Kishor Shrivastava
चाय और सिगरेट
चाय और सिगरेट
आकाश महेशपुरी
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त
DR ARUN KUMAR SHASTRI
दीवारों की चुप्पी में
दीवारों की चुप्पी में
Sangeeta Beniwal
कुछ आदतें बेमिसाल हैं तुम्हारी,
कुछ आदतें बेमिसाल हैं तुम्हारी,
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
💐💐तुम्हारे साथ की जरूरत है💐💐
💐💐तुम्हारे साथ की जरूरत है💐💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
बुज़ुर्गो को न होने दे अकेला
बुज़ुर्गो को न होने दे अकेला
Dr fauzia Naseem shad
We make Challenges easy and
We make Challenges easy and
Bhupendra Rawat
चाँद खिलौना
चाँद खिलौना
SHAILESH MOHAN
फिर से अरमान कोई क़त्ल हुआ है मेरा
फिर से अरमान कोई क़त्ल हुआ है मेरा
Anis Shah
आह जो लब से निकलती....
आह जो लब से निकलती....
अश्क चिरैयाकोटी
मत कुरेदो, उँगलियाँ जल जायेंगीं
मत कुरेदो, उँगलियाँ जल जायेंगीं
Atul "Krishn"
कितना मुश्किल है केवल जीना ही ..
कितना मुश्किल है केवल जीना ही ..
Vivek Mishra
ये हवाएँ
ये हवाएँ
VINOD CHAUHAN
बाबूजी।
बाबूजी।
Anil Mishra Prahari
शाकाहारी बने
शाकाहारी बने
Sanjay ' शून्य'
"इस हथेली को भी बस
*Author प्रणय प्रभात*
मृदा मात्र गुबार नहीं हूँ
मृदा मात्र गुबार नहीं हूँ
AJAY AMITABH SUMAN
Loading...