बिन काया के हो गये ‘नानक’ आखिरकार
*दीपावली का ऐतिहासिक महत्व*
ता-उम्र गुजरेगी मिरी उनके इंतज़ार में क्या?
तेरा मेरा खुदा अलग क्यों है
जीवन एक और रिश्ते अनेक क्यों ना रिश्तों को स्नेह और सम्मान क
रोशनी से तेरी वहां चांद रूठा बैठा है
अब तो इस वुज़ूद से नफ़रत होने लगी मुझे।
मुक्तामणि छंद [सम मात्रिक].
मैं भारत माँ का प्रहरी हूँ
इन आंखों से इंतज़ार भी अब,
माना आज उजाले ने भी साथ हमारा छोड़ दिया।
*जनता को कर नमस्कार, जेलों में जाते नेताजी(हिंदी गजल/ गीतिका
रूप से कह दो की देखें दूसरों का घर,