ये सिलसिले ऐसे
पता नहीं कितने लोक हैं
लेकिन पृथ्वी लोक में
हर कोई निबाहता है,
पता नहीं चलता
यहाँ कौन किसे चाहता है?
तभी तो यहाँ सैकड़ों भर्तृहरि
अब तक ले चुके हैं वैराग्य,
कुछ कहते कर्म इसे
मगर कुछ बताते भाग्य।
ये सिलसिले ऐसे कि
संसार में कभी टूटते नहीं,
अनादि काल से
अटल यह रास्ते
कभी भी मिटते नहीं।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त।