ये लो कलम, पकड़ो किताब
ये लो कलम
पकड़ो किताब
छोड़ो ये काम करने के औजार
छोड़ो-छोड़ो नन्हें हांथों से
लेना श्रम का कारोबार
किताबों के पन्ने पलटो
उसमे मिलेंगे जीवन के सार
राशन और भाषण का अंतर बतलायेंगे
ये तुम को, नन्हें पहरेदार
समाज की पहरेदारी करते हो
दिन रात चौकीदारी करते हो
अपनों और औरों की सेवादारी करते हो
पर कलम-किताब के बिन
इसके अनमोल नुस्खों के बिन
अपनी हक की ही बातें नही समझते हो
तो, लो पकड़ो इसे
दांतों से अपने जकड़ो इसे
ये तुमको रात और सवेरा
का अंतर कर के बतलायेगा
चाँद और सूरज की
दुरी मांपना तुम्हें सिखलायेगा
तुम्हें बतलायेगी
जीवन की लहरों पे चलना
गिरना, गिरकर फिर सम्भलना
पतवार से मचलना भी तो तुम्हें सिखलायेगा
नाव और पतवार के हर एक पुर्जे को
हांथो से तुम्हारी ये बनवायेगा
मजधार से किनारे की ओर तुम्हें ले जायेगा
जीवन के हर आपा – धापी में
साथ तुम्हारा निःस्वार्थ भाव से निभायेगा
तो लो, मेरे नन्हें पहरेदार
कलम और किताब लो
दोस्ती तुम किताबों से कर लो
कुछ सीखो खुद कुछ औरों को भी सिखलादो
***
28 .08 .2019
सिद्धार्थ