ये कैसे मोड़ पर अब आ गया हूँ मैं
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यक़ीं मुश्किल है, उनको पा गया हूँ मैं
ये कैसे मोड़ पर अब आ गया हूँ मैं
खुमारी इश्क़ की जाये नहीं दिल से
कि अपने आप से घबरा गया हूँ मैं
धड़कता है उन्हीं का नाम लेके क्यों
संभल ऐ दिल कि धोका खा गया हूँ मैं
महाभारत सी कोई जंग है भीतर
ग़ज़ब ये कश्मकश! उकता गया हूँ मैं
ग़ज़ल कहते हुए टूटा भरम मेरा
लगा ग़ालिब को कुछ-कुछ पा गया हूँ मैं