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10 May 2022 · 1 min read

*ये कहाँ आ गई हूँ मैं*

“ये कहाँ आ गई मैं
खुद को तलाशते निखारते हुए ,
न जाने किस पड़ाव पे आ गई हूँ।
रुकते थमते ठिठकते हुए से कदमताल ,
कभी लड़खड़ाए ,डगमगाए फिर अब सम्हल गई हूँ मैं।

जीवन के उलझनों को सुलझाते हुए ,
कठिन परिश्रम विपरीत परिस्थितियों को पार करते हुए ,
आशा विश्वास की डोरी थाम कर उम्मीद का दीप जलाई हूँ मैं।

कभी निराश हताश होकर नैनों से अश्रुधारा बहाते हुए ,
जरा सी बात में चिंतित हो हड़बड़ाई हूँ मैं।
अब शक्ति भक्ति का सहारा लिए जीने की आस जगाई हूँ मैं।

लगन प्रभु से लगाए हुए सिर्फ उनसे ही मन की बात करती हूँ मैं।
हर समस्या का निदान उन्ही में ढूढ़ती फिरती हूँ मैं।
सुकून शांति का एहसास मिला सबमें ईश्वर का रूप देखती हूँ मैं।

क्या कहूँ किससे कहे कुछ न कुछ खमियाँ दिखती है मुझमें।
सोचती हूँ उन कमियों को पूरा करने की ठान लेती हूँ मैं।
फिर से वही गलतियाँ कमी नजर आ जाती है मुझमें।
लौटकर पुनः उन कमियों को फिर से सँवारती रहती हूँ मैं।

बस यही वजह है कि जहां पहले से मौजूद थी ,
अब दो कदम आगे बढ़ने का हौसला जगाई हूँ मैं ।
आज पहले से बेहतर अनुभव लेके जीवन में नई दिशा में आगे नई दिशा में डगमगाते कदमों को गिरते हुए सम्हाल पाई हूँ मैं।
ये कहाँ आ गई हूँ मैं
खुद भी समझ ना पाई हूँ मैं
शशिकला व्यास✍️

Language: Hindi
2 Likes · 178 Views
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