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21 Jan 2024 · 1 min read

मुद्दतों बाद फिर खुद से हुई है, मोहब्बत मुझे।

सफर तन्हाईयों का, बेइंतिहां सुकूं देता है मुझे,
कदम अपने मेरे साथ, तुम बढ़ाया ना करो।
बेहोश जज़्बातों में घुलकर, साँसें चलती हैं मेरी,
होश की छींटों से मेरे एहसास, तुम भिंगोया ना करो।
इठलाती सी वो हवा ठहरती है, खिड़कियों पर मेरी,
बेवजह गिरे पर्दों को, तुम हटाया ना करो।
वो गुमशुम चांदनी अलाव जलाये बुलाती है मुझे,
ढ़ेर लकड़ियों का यूँ हीं, तुम लगाया ना करो।
जुगनूओं ने रोशन कर रखें हैं, शामों को मेरे,
देहलीज पर मेरी दीये, तुम जलाया ना करो।
आसमां ने रंग बिखेरे है, दामन पर मेरे,
रंगरेज से मेरी चुनर, तुम रंगवाया ना करो।
बरसती हैं ओस की बूंदें, आंसुओं संग मेरे,
मेरे अश्कों में आँखें अपनी, तुम डुबाया ना करो।
बेचैनियों में हीं, चैन का सबब मिलता है मुझे,
ख़ामख़ाह अपने दिल को, तुम तड़पाया ना करो।
खुली आँखों की जायज़ सच्चाईयाँ, लुभाती है मुझे,
ख़्वाबों का तिलिस्मी बाजार, तुम लगाया ना करो।
मुद्दतों बाद फिर खुद से हुई है, मोहब्बत मुझे,
फिजाओं में अपनी मोहब्बत की अफवाह, तुम फैलाया ना करो।

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