यारों की आवारगी
यारों की आवारगी
न लगे कभी कागज़ी
न पैसों से मिलपायेगी
इस मतलब की दुनियां में
ओ यार
यारो की बदमाशिया
वो हँसिया
वो ठिठोलिया
जीते लड़ते थे जो अपने साथ
उनका ये अधूरापन
लगता है सब अकेलापन
हफ़्तों
महीनों
सालों
न होती उनसे बात
बस इकबारी लौटा दे भगवन
वो मेरा पुराना बचपन
बचपन के भी दोस्त
न है अपने पास
जब फ़िर ज़बानी आई
तब बने सब दोस्त भाई
कुछ ललित, भरत
से है खास
ललित सिखाया मुझको
जिंदगी को जीना सीखो
तो भरत भी रहता है
हर मोड़ पे अपने साथ
पर जीतू को मैं कैसे भूल गया
वो भी तो है अपनी जान
यारों की आवारगी
न लगे कभी कागज़ी
न पैसों से मिलपायेगी
इस मतलब की दुनियां में
ओ यार