Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Jan 2024 · 3 min read

।।अथ श्री सत्यनारायण कथा तृतीय अध्याय।।

कहा श्री हरि नारद संवाद, फिर शतानंद की कथा कही।
लकड़हारे के जीवन की, गाथा तुमको मैंने सकल कही।।
अब क्या सुनने की इच्छा है,हे ऋषियों मुझे बताओ।
पावन नाम श्री हरि का, हृदय में अपने गाओ।।
ऋषियों ने बोला हे महाभाग,हम सुन कर कृतार्थ हुए।
पुरा काल में कौन कौन, इस व्रत को करने से मुक्त हुए।।
सूत जी बोले हे ऋषिवर, मैं आगे की कथा सुनाता हूं।
साधू वैश्य उल्कामुख राजा की, गाथा प्रेम से गाता हूं।।
प्राचीन काल में उल्कामुख नाम का, सत्यव्रती राजा था।
धर्मशील सपत्नीक राजा,नित्य देवालय जाता था।।
भद्रशीला नदी के तट पर,राजा ने सत्यनारायण की।
उसी समय एक साधू वैश्य की,नाव नदी में आन लगी।।
साधू वैश्य ने पूछा राजन्,ये किसका व्रत पूजन है।
व्रत और पूजन से राजन, आपका क्या प्रयोजन है।।
राजन बोले हे साधु वैश्य, ये कथा है सत्य नारायण की।
धन वैभव उत्तम गति देती, कामना पूरी करती संतान की।।
साधु बोला हे राजन्, मुझको भी संतान नहीं है।
मुझे भी व्रत की विधि बतलाओ, दुखों का पारावार नहीं है।
राजा ने सब विधि बताई,साधु ने घर को प्रस्थान किया।।
घर जाकर अपनी धर्मपत्नी को, सारा वृत्तांत सुना दिया।।
साधु बोला हे प्राण-प्रिय, संतति होने पर व्रत करूंगा।
श्रद्धा और विश्वास से मैं भी, सत्यनारायण कथा करूंगा।।
एक दिन लीलावती पति संग, सांसारिक धर्म में प्रवृत्त हुई।
गर्भवती हुई लीलावती, दसवें मास में कन्या रत्न हुई।
चन्द्र कला सी बढ़ी दिनों दिन, नाम कलावती धराया।
साधु ने भगवत कृपा से, अपने मन का वर पाया।।
एक दिन भार्या लीलावती ने, संकल्प को याद दिलाया।
बोला विवाह के समय करूंगा, भार्या को समझाया।।
निकल गया समय पंख लगा कर,वेटी विवाह योग्य हुई।
उत्तम वर की खोजबीन की, कंचनपुर नगर में पूरी हुई।।
धूम-धाम से विवाह किया, पत्नी ने फिर याद दिलाई।
भावीवश फिर भूल गया, वैश्य को बात समझ न आई।।
भ्रष्ट प्रतिज्ञा देख साधु की, भगवान ने उसको शाप दिया।
दारुण दुख होगा साधु तुम्हें, तुमने संकल्प को भुला दिया।।
संकल्प शक्ति है, कार्यसिद्धि की,जो दृढ़ संकल्पित होते हैं।
होती है उनकी कार्य सिद्धि,वे सदा विजयी होते हैं।।
जिनकी निष्ठा होती है अडिग, विश्वास जयी होते हैं।
कठिन से कठिन कार्य भी उनके, आसान सभी होते हैं।।
जीवन में जो नर नारी, संकल्प भूल जाते हैं।
दृढ़ नहीं जो कर्म वचन पर, निरुद्देश्य हो जाते हैं।।
निरुद्देश्य भटकते हैं जीवन में, इच्छित फल न पाते हैं।
आत्म विश्वास और भरोसा,आदर सम्मान गंवाते है।।
एक समय वैश्य साधु जामाता, व्यापार को परदेश गया।
भावीवश चंद्रकेतु राजा का धन, कतिपय चोरों ने चुरा लिया।।
भाग रहे थे चोर डरकर,राजा के सिपाही पीछे पड़े थे।
डर के मारे छोड़ गए धन, जहां दोनों वैश्य ठहरे थे।।
दूतों ने राजा का धन, वैश्यों के पास रखा देखा।
बांध लिया दोनों वैश्यों को, सुना समझा न देखा।।
ले गए दूत राजा के पास, चोर पकड़ लाए हैं।
देख कर आज्ञा दें राजन,धन भी संग में लाए हैं।।
विना विचारे राजा ने, दोनों को कारागार में डाल दिया।
जो भी धन था वैश्यों का, राजा ने राजसात किया।।
भावीवश वैश्य के घर का, धन चोरों ने चुरा लिया।
अन्न को तरसीं मां वेटी, और दुखों ने जकड़ लिया।।
एक दिन भूख प्यास से व्याकुल कलावती, एक ब़ाम्हणके घर में गई।
सत्य नारायण व्रत था घर में, कलावती सब जान गई।।
देर रात लौटी घर में, मां को व्रत की बात बताई।
लीलावती को याद आ गई,जो पति ने थी समझाई।।
लीलावती ने मन ही मन, भगवान से क्षमा मांगी।
हम हैं अज्ञानी भगवन,अब मरी चेतना जागी।।
हे नाथ दया कर क्षमा करें,पति सहित अपराध हमारे।
तेरे व्रत पूजन से आ जाएं घर, जामाता पति हमारे।।
दीन प्रार्थना सुनकर प्रभु ने, चन्द्र केतु को स्वप्न दिया।
छोड़ दो तुम दोनों वैश्यों को,धन दे दो जो राजसात किया।।
आज्ञा का यदि हुआ उलंघन, भीषण दंड तुम्हें दूंगा।
राज पाट धन वैभव संतति, सर्वस्व नाश कर दूंगा।।
राजा ने राजसभा आकर,अपना स्वप्न सुनाया।
शीघ्र ही दोनों वैश्यों को राजा ने,बंधन मुक्त कराया।।
पहले जो ले लिया था धन, दुगना कर लौटाया।।
भावीवश आप दोनों ने, घोर कष्ट पाया है।
प्रेम सहित अब घर को जाएं, समय शुभ आया है।।
हाथ जोड़ प्रणाम किया राजन को, वैश्य ने फिर प्रस्थान किया।
घर को निकल पड़ा साधु,मन: शांति विश्राम किया।।
।।इति श्री स्कन्द पुराणे रेवा खण्डे सत्यनारायण व्रतकथायां तृतीय अध्याय संपूर्णं।।
।।बोलिए सत्य नारायण भगवान की जय।।

Language: Hindi
230 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from सुरेश कुमार चतुर्वेदी
View all

You may also like these posts

श्रंगार
श्रंगार
Vipin Jain
क्या जिंदगी थी
क्या जिंदगी थी
सिद्धार्थ गोरखपुरी
ज़िंदगी के फ़लसफ़े
ज़िंदगी के फ़लसफ़े
Shyam Sundar Subramanian
प्रेम पीड़ा का
प्रेम पीड़ा का
Dr fauzia Naseem shad
https://jlfunwin.com/
https://jlfunwin.com/
jlfunwin
साथ
साथ
Rambali Mishra
भ्रष्टाचार और सरकार
भ्रष्टाचार और सरकार
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
दादी...।
दादी...।
Kanchan Alok Malu
मैं स्त्री हूं भारत की।
मैं स्त्री हूं भारत की।
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
"चिन्तन का कोना"
Dr. Kishan tandon kranti
कविता कविता दिखती है
कविता कविता दिखती है
महेश चन्द्र त्रिपाठी
प्यार की पाठशाला
प्यार की पाठशाला
सुशील भारती
मेरा देश
मेरा देश
Santosh kumar Miri
वसंत के दोहे।
वसंत के दोहे।
Anil Mishra Prahari
मोहब्बत।
मोहब्बत।
Taj Mohammad
कभी तो ये शाम, कुछ यूँ गुनगुनाये, कि उसे पता हो, इस बार वो शब् से मिल पाए।
कभी तो ये शाम, कुछ यूँ गुनगुनाये, कि उसे पता हो, इस बार वो शब् से मिल पाए।
Manisha Manjari
हो गये अब अजनबी, यहाँ सभी क्यों मुझसे
हो गये अब अजनबी, यहाँ सभी क्यों मुझसे
gurudeenverma198
स्त्रियाँ
स्त्रियाँ
Shweta Soni
थाने में गड़बडी़ ( 34)
थाने में गड़बडी़ ( 34)
Mangu singh
बेरोजगार लड़के
बेरोजगार लड़के
पूर्वार्थ
आदि विद्रोही-स्पार्टकस
आदि विद्रोही-स्पार्टकस
Shekhar Chandra Mitra
2907.*पूर्णिका*
2907.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
हिंदी दोहे- कलंक
हिंदी दोहे- कलंक
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
“मैं फ़िर से फ़ौजी कहलाऊँगा”
“मैं फ़िर से फ़ौजी कहलाऊँगा”
Lohit Tamta
"यदि जीवन को खेल मानते हो , तो पूरे उत्साह से दम लगाकर खेलो
Likhan
अर्धांगिनी
अर्धांगिनी
Buddha Prakash
कुछ असली कुछ नकली
कुछ असली कुछ नकली
Sanjay ' शून्य'
जिनके घर खुद घास फूंस के बने हो वो दूसरे के घर में माचिस नही
जिनके घर खुद घास फूंस के बने हो वो दूसरे के घर में माचिस नही
Rj Anand Prajapati
कोई मेरी खुशियों में खुश होता है,
कोई मेरी खुशियों में खुश होता है,
श्याम सांवरा
आभ बसंती...!!!
आभ बसंती...!!!
Neelam Sharma
Loading...