यशस्वी भव
यशस्वी भव
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तिमिर घनेरा चीर पथिक तू ,
निकला लक्ष्य अडिग था पथ पर।
मर्म तेरा अब वो क्या जाने,
जख्म जिसे नहीं लगता दिल पर।
रातें काटी गिन-गिन कर तू,
सोया था कांटो का बिस्तर।
देख पसीना दिल पसीजा था ,
आशीष दिये तब तुमको रघुवर।
लगता है अब सबकुछ जैसे ,
सपनों से भी ज्यादा सुंदर।
आज खुशी से झूम रहें हैं ,
कानन घर आंगन और तरुवर।
यशस्वी भव ,तू वीर पुत्र है,
विश्वस्तरीय है बना क्रिकेटर।
कर्म किया था फल पाया है ,
तुझसा नहीं कोई दूजा पुत्तर।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १९ /०२ /२०२४,
माघ,शुक्ल पक्ष,दशमी,सोमवार
विक्रम संवत २०८०
मोबाइल न. – 8757227201