यमुना के तीर पर
यमुना के तीर पर छठ की छटा,
अमृत-ज्योति की ऐसी प्रभा।
भोर की बांसुरी गूँज उठी,
कुसुम-से जोड़े में प्रीति सजी।
जल में अग्नि का यह मिलन,
धरती-आकाश का हुआ स्पंदन।
नारी के माथे पर विश्वास की चमक,
सूरज के अर्घ्य में झुका गर्व प्रबल।
जाग्रत, गंभीर, यह अनंत उत्सव,
प्रेम में डूबी भक्ति का अनुष्ठान।
रात में भी महकता मधुर प्रेम,
प्रकृति की लहरों में उल्लास का संग्राम।
श्वेत दुपहरी का यह श्रृंगार,
अर्घ्य के जल में तन का समर्पण।
यमुना के तीर पर अनहद गान,
जन-जन की भक्ति, जीवंत ज्ञान।
—-श्रीहर्ष—-