मैं
मैं
खोजना चाहता हूँ एक बार खुद को ही मैं
पञ्च तत्व से निर्मित हूँ फिर भी जाने क्यों
लगूं क्यू कभी –कभी बिखरा सा
और कभी साहस का दरिया
जैसे ज्वालपुंज कोई मेरे अन्दर
कभी हिमखंड स्थिर को पाऊं
काभी धीर धरा का अर्नव विशालकाय भी
कभी सूनापन गहरा मन में
कभी स्नेह का बहती सरिता भी
एक नया चिंतन दर्शन में
कभी सुमेरु सा प्रबल दंभ
कभी प्यार उमड़ता अंतस में
कभी अश्रु छलकते नैनन में
कभी मद में होकर बहकूँ
कभी आवेग का तीव्र पर्याय
कभी ममता मन में गहराए
कभी वात्सल्य भी ज्वार उठाये
कभी आलिंगन करूँ स्वयं का
कभी लगे खुद ही खो जाये
कभी लगे मोहपाश बंधी हूँ
कभी स्वछन्द आत्मा का मंथन
कभी लगे सूफी का जोग है
कभी महायोगी का महा दर्शन
कभी अजानबाहु को करती अनुभव
कभी स्वयं मिट जाता ये मन
अस्तित्व मेरा क्या खुद से पूछूं
व्यक्तित्व मेरा मैं खुद में खोजूं
सत्य क्या मैं तो यह सोचूं , तुझमें अपना दर्पण देखूं
क्यों स्वयं को इतना परखूँ ,मेरा आध्यात्म मेरा दर्शन
मेरी आराधना मेरा अर्चन, मेरी आत्मा और उसका चिन्तन
यही उपासना मेरी , ज्ञान क्षुधा अंतस की प्यास
तू ही मेरा सत्य तू ही प्रकाश ;मेरा जीवन .. जीवन विश्वास