*दान: छह दोहे*
दान: छह दोहे
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1)
मैं-मेरा जिससे घटा, कहते उसको दान
रहा नहीं संग्रह तनिक, रहा नहीं अभिमान
2)
देता दायॉं हाथ है, बायॉं है अनजान
जो प्रचार से है रहित, असली वह ही दान
3)
ज्यादा धन की लालसा, अभिमानी व्यवहार
इससे कैसे बच सकें, आओ करें विचार
4)
दान दिया तो बढ़ गया, झूठा कुछ अभिमान
सोच रहा दानी पुरुष, अब मैं श्रेष्ठ महान
5)
देने वाले ने दिया, सोचो किसका दान
भूमि भवन संपत्ति के, स्वामी तो भगवान
6)
रहा नहीं जग में सदा, कोई एक समान
कभी गरीबी आ गई, कभी धनी इंसान
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451