“मैं हूं ना”
बीत गया जीवन दरकार करते-करते,
कभी वह कहते, हम सिर्फ तुमसे प्यार करते हैं।
अब कोई पुकार ना रही तुमसे,
स्वतंत्र हो, तुम स्वतंत्र हो तुम हमसे ।
खामोश हो गई है ,अब जिंदगी
कोई उत्साह ना रहा ना रही कोई दिल्लगी।
कैद हो गई चारदीवारी में
आबोहवा की ख्वाहिश खत्म हो गई ।
बोझिल हो गई है ,यह जिंदगी सिर्फ
सांस थमने की दरकार रह गई।
कभी वह, पल भी आया होता, कि कहते
मत हो इतनी उदास मैं हूं ना मैं हूं ना।