मैं हिंदू हूँ
मैं भरा हुआ हूँ गुस्से से और भरू क्यों नहीं गुस्से से।
मैं सत्ता हूँ और शासक भी, मैं बहुसंख्यक और हिंदू भी।।
मैं आर्यव्रत और भारत भी, मैं हिंदुस्तान का सहरा भी।
मैं डरा हुआ और सहमा भी, मैं कायरता का चहरा भी।।
मैं हिंदू हूँ मैं हिंदू हूँ, मैं हिंदू हूँ मैं हिंदू हूँ…
मैं नहीं किसी का भक्षक था, मैं शरणागत का रक्षक था।
मैं अटल अडिग बस ताप था, मैं महाराणा का प्रताप था।।
मैं खुली सिखा का मान था, मैं चाणक्य का स्वाभिमान था।
मैं मौर्यों का भी मौर्य था, मैं चंद्रगुप्त का शौर्य था।।
मैं हिंदू हूँ मैं हिंदू हूँ, मैं हिंदू हूँ मैं हिंदू हूँ…
जब बोली नूपुर तो बवाल हुआ और बोले जाकिर तो सही कहा।
ये उसने नहीं कुछ मन से कहा, जो लिखे हुए वो शब्द कहे।।
अब कतर हमें दिखलाता है, औकात हमारी देखो तुम।
जुम्मे की एक नमाज में ये, शक्ति प्रदर्शन कर जाते हैं।।
मैं हिंदू हूँ मैं हिंदू हूँ, मैं हिंदू हूँ मैं हिंदू हूँ…
मैं विस्तार ना अपना कर पाया, जितना था उतना ना रह पाया।
मैं लूटा बटा और कट पाया, फिर भी मैं सीख नहीं ये ले पाया।।
ये मेरे थे बस बदल गए और माता की ममता भूल गए।
मैं सोया हूँ और खोया हूँ, हर बार तड़फ कर रोया हूँ।।
मैं हिंदू हूँ मैं हिंदू हूँ, मैं हिंदू हूँ मैं हिंदू हूँ…
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“ललकार भारद्वाज”