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18 Nov 2019 · 1 min read

मेरे मन की आवाज

मेरे मन की आवाज
मुझे डर है कि हिन्दी साहित्य कहने लगे कि आजकल चोरो की भरमार हो गई है आजकल के तो चोर मेरे शब्द कोश मे से शब्दो को चुराने लगे है। इसी प्रकार अगर तुलसी, कवीर, बालमीकि, जैसे महान कवि भी इसी बात का दावा करके कहने लगे कि की हम भी आपके समर्थन मे है साहित्य जी क्योकि लोग हमारी इतिहासिक रचनाओ को पढ़कर हमारे मन के भावो व बिचारो को चुराने लगे है तो क्या होगा
कुछ अच्छे लोग भी दावा करते है आजकल कविता चोर मेरी पंक्तियो व कविताओ को चुराने लगे है ।
मेरे ये समझ नही आ रहा यदि गुरु भी कहने लगे कि मेरे शिष्य भी चोर है तो फिर क्या होगा।
मे सोच सोच परेसान हूँ कि क्या कुछ कवि लोग जीबन भर मे इक ही लाइन, पंक्ति, या कविता बना पाते है क्या । क्या एक ही कविता को हमेशा मंचों गुनगुनाते है क्या उन्हे ख़ुद कि काविलियत पर इतना भी भरोसा नही क्या उन्हे उनके विश्वास पर सक है मै कहता हूँ आपको कविता चोरी की संका है तो आप अपने भावो व विचारो को सोने चाँदी जेवर की तरह तिजोरी मे बंद कर के रख दो ताकि न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी
मे लेख पढ़ने बाले महानुभवो से हाथ जोड़ कर माफी मांगता हूँ कि यदि मुझसे कुछ गलती हुई हो तो मूर्ख समझ कर माफ करना
???????
✍कृष्णकांत गुर्जर धनौरा

Language: Hindi
Tag: लेख
6 Likes · 481 Views
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