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13 Jun 2023 · 1 min read

माना अपनी पहुंच नहीं है

माना अपनी पहुंच नहीं है
आसमान के तारों तक
पर हम उन्हें निहारा करते
आंखें गड़ा-गड़ा एकटक

आंखों में उन्नति के सपने
तारों से कब कम होते
बेहतर कल के लिए नींद में
अपना समय न हम खोते
बिलावजह की चकचक में पड़
नहीं लड़ाते हैं हम झक

जलती हुई मशाल कला की
सबका मंगल करती है
अंतस का तम हर लेती है
हर्ष हृदय में भरती है
विश्वासी को चैन कहां जब
उरपुर में चलती ठकठक

कला, कला के लिए नहीं जब
कला ज़िन्दगी बन जाती
तब साहित्य चमक उठता है
मानवता ऊर्जा पाती
सुधा-वृष्टि होती निशिवासर
पीकर हम जाते हैं छक

महेश चन्द्र त्रिपाठी

Language: Hindi
Tag: गीत
181 Views
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