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9 Jul 2017 · 1 min read

मुश्किलों के दौर को

मुश्किलों के दौर को हम खुद पे ऐसे सह गए
कुछ तो आँसू पी लिए कुछ एक आँसू बह गए

उम्र भर आँखों में पाला था जिन्हें अपना समझ
ख्व़ाब वो ऐसे गए हम देखते ही रह गए

रफ़्ता रफ़्ता रात दिन हमको मिटाया वक़्त ने
रेत का हम घर न थे जो एक पल में ढह गए

आप उनके दर्द को हरगिज़ न कमतर आंकिये
वक़्त की यह दास्ताँ जो मुस्कुराकर कह गए

क्या बताऊँ मैं तुम्हें अब ज़ख्म कैसे हैं मेरे
भर गए हैं ज़ख्म लेकिन दाग़ फिर भी रह गए

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