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15 Aug 2017 · 1 min read

मुखौटा

मुखौटा पहने है लोग यहां सच की कैसे पहचान करे
बाहर से अमृत है दिखता अंदर से पूरे गरल भरे
इंसान आज दुर्लभ है जग मे रोज ठगे घर मे मग मे
दिल से पूरे काले है ये बाहर से उजियारे है ये
आज बंचना कर बढते सज्जन तो लाचारे है
ये
सच छिपाने हेतु ही नकाब मुख पर धारे है ये
बेनकाब करना है इनको गलत करे और प्यारे है ये
विन्ध्यप्रकाश मिश्र
नरई संग्रामगढ प्रतापगढ उ प्र
9198989831

Language: Hindi
231 Views
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