Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 May 2017 · 8 min read

रमेशराज की पत्नी विषयक मुक्तछंद कविताएँ

-मुक्तछंद-
।। मेरे बारे में ।।
पत्नी जानती है
जानती है पत्नी
यही कि-
इस अभाव-भरे माहौल में
मैंने बहुत चीजों में
कटौती कर दी है
मसलन
अब सिरगेट की जगह
बीड़ी पीने लगा हूं
पान की जगह
सौंफ खाने लगा हूं।
होटल में दोस्तों के साथ
एक कप चाय पीने के लिए
अक्सर कतराने लगा हूं।

पत्नी जानती है
जानती है पत्नी
सब कुछ मेरे बारे में
यही कि
कल उसने अपने लिए
एक सूती धोती
पप्पू के लिए चप्पल की
फरमाइश की थी,
तो मेरे भीतर का
चिन्तन तिलमिला उठा था,
मेरी आंखों का सागर
छलछला उठा था।

पत्नी जानती है
जानती है पत्नी
सब कुछ मेरे बारे में
यही कि-
किसी मजबूरी के तहत
उसे चार-चार महीने
फिल्म दिखाने नहीं ले जाता
बच्चों के लिए
उनकी लाख इच्छाओं के बाबजूद
आम-संतरे-केले बगैरह
नहीं ला पाता।

पत्नी जानती है
जानती है पत्नी
सब कुछ मेरे बारे में
-रमेशराज

————————————–
-मुक्तछंद-
।। सौन्दर्यबोध ।।
यूं तो तुम मुझे हमेशा अच्छी लगती हो प्रिये
प्रिये यूं तो तुम मुझे हमेशा अच्छी लगती हो
लेकिन जब गरीबी और भूख के बीच
गिरी हुई जि़न्दगी के अधरों पर
कोई शब्द-गुलाब उगाती हो
अपाहिज संकल्पों की
बैसाखी बन जाती हो,
उस वक्त तुम्हें चूमने को जी करता है
छीजते सुखों के बीच
झूमने को जी करता है।

प्रिये कितने हसीन होते हैं
कितने हसीन होते हैं प्रिये
वे प्यार के क्षण
जबकि परिवार की
बूढ़ी जरूरतों को
तुम सहारा देती हो,
मेरे मन की टीसों का बोझ
अपने मन पर लेती हो।
उस वक्त तुम्हारे साथ
मुस्कराने की इच्छा होती है
तुम में डूब जाने की इच्छा होती है।

प्रिये यूं तो तुम मुझे
उस वक़्त भी भाती हो
जब नई साड़ी पहन
मेरे सामने आती हो,
लेकिन जब उसी साड़ी से
किसी गरीब नारी का
तन ढक आती हो
उस वक्त
तुम्हारी महानता के
गीत गाने को जी करता है
तुम्हें क्रान्ति-सा
गुनगुनाने को जी करता है।

प्रिये क्या तम जानती हो
क्या तुम जानती हो प्रिये
जब तुम्हारे भीतर ठीक मेरी तरह
कोई आदर्शों का घायल परिन्दा
उड़ने को फड़फड़ाता है
और आखों में
कोई वसंत का सपना बुन जाता है,
उस वक्त तुम्हें मैं
अपने भीतर कविता-सा जीता हूं
तुम्हारे हिस्से का दर्द स्वयं पीता हूं।
-रमेशराज

—————————————
-मुक्तछंद-
।। उस वक़्त ।।
पत्नी क्या कहेगी
क्या कहेगी पत्नी
उस वक्त
जबकि वह
पांच किलो चीनी की
फरमाइश करे
मैं दो किलो गुड़ खरीद लाऊं
शेष पैसों से
दोस्तों के साथ
दो कप चाय पी आऊं।
पत्नी क्या कहेगी
क्या कहेगी पत्नी
उस वक़्त?

यही कि-
आज मीठे पूए बनाऊं
या गुड को चाय,
पत्नी जल-भुनकर
कुछ और भी कह सकती है
इस बात के सिवाय।

पत्नी क्या कहेगी
क्या कहेगी पत्नी
उस वक़्त?
जबकि वह
दो किलो सब्जी
खरीदने के लिए
भेजे बाजार
मैं ले जाऊ
पचास ग्राम
आम का अचार।

पत्नी क्या कहेगी
क्या कहेगी पत्नी
उस वक़्त ?
यही कि
मैं गैस-चूल्हा लाने में
बहाने बना रहा हूं
साईकिल खरीदने के लिए
पैसे बचा रहा हूं

पत्नी क्या कहेगी
क्या कहेगी पत्नी
उस वक़्त?
जबकि वह
टूटी खाट के बदले
नयी खाट की
फरमाइश करे
मैं उसके लिए
एक धोती खरीद लाऊं
पत्नी क्या कहेगी
क्या कहेगी पत्नी
उस वक्त….
-रमेशराज

——————————–
-मुक्तछंद-
।। यदि मैं ।।
कैसा लगेगा पत्नी को
पत्नी को कैसा लगेगा?
यदि मैं
इस माह का पूरा वेतन
पत्नी के हाथ पर न रखूँ
बल्कि उसमें से
दो किलो मिठाई
पांच किलो सेब
खरीद कर घर आऊं
या फिर अपने लिए
साईकिल कसबा लाऊं
इस दरम्यान
बच्चों की फीस
पत्नी की धोती
मकान का किराया
दूधिये के पैसे
आदि के बारे में
कतई भूल जाऊं।

कैसा लगेगा पत्नी को
पत्नी को कैसा लगेगा?
क्या वह मिठाई वगैरह को
मेरे और बच्चों के बीच
इत्मीनान से बांट कर खायेगी
नयी साईकिल को देखकर
जमकर सिहाएगी
या फिर
मुझसे दिन-भर नहीं बोलेगी
रात को चुपचाप सो जायेगी,
हफ्तों गुस्सा दिखलाएगी।

कैसा लगेगा पत्नी को
पत्नी को कैसा लगेगा?
यदि मैं
इस माह का वेतन
पत्नी के हाथ पर रखूँ
बल्कि उससे
एक सिलाई मशीन खरीद लाऊं
या फिर
उसके लिए एक साड़ी लेकर
घर आऊँ ?
इस दरम्यान
अपने गर्म सूट, जूते
और लुंगी की बात भूल जाऊं।

कैसा लगेगा पत्नी को
पत्नी को कैसा लगेगा?
क्या वह सिलाई मशीन से
बच्चों के फटे कपड़े
मेरी पुरानी पेंट
अपना पेटीकोट
और ब्लाऊज सीयेगी
या फिर
मेरा खून पियेगी
क्या उसे याद आयेगा
साड़ी पहनकर
सुहाग रात वाला दिन
क्या उसका मुर्राया चेहरा
दिख सकेगा पहले की तरह
शादाब और कमसिन ?
या फिर
अगले माह का वेतन मिलने तक
और ज्यादह खतरे में पड़ जायेंगे
उसके चेहरे के रंग,
उनके मन के
अफसुर्दा गुलाब
सूख जायेंगे
यकायक एक संग।

कैसा लगेगा पत्नी को
पत्नी को कैसा लगेगा?
यदि मैं
इस माह के वेतन को
पत्नी के हाथ पर न रखूं
बल्कि उससे
कविता कहानी संग्रह
और उपन्यास खरीद लाऊं
इस दरम्यान
बच्चों की किताबें और
कापियों की बात भूल जाऊं।

कैसा लगेगा पत्नी को
पत्नी को कैसा लगेगा?
क्या वह बच्चों को
मार्क्स पढ़ायेगी
धूमिल, मुक्तिबोध की
कविताएं रटायेगी
दुष्यंत के शेर गुनगुनायेगी
या फिर इस पुस्तकों को
मुझ से छुपाकर
रद्दी में बेच आयेगी।
कैसा लगेगी पत्नी को
पत्नी को कैसा लगेगा?
-रमेशराज

—————————————
-मुक्तछंद-
।। ऐसे भी ।।
पत्नी क्या सोचती होगी
क्या सोचती होगी पत्नी
मेरे बारे में?
यही कि मैं हर दिन
उस पर उतार देता हूं
दफ्तर की खीज
अधिकारी की डांट
फाइलों का बोझ
हर दिन कर जाता है
मेरा तनाव
उससे मानसिक बलात्कार,
उसकी जिंदगी में नहीं है
नहीं है उसकी जिदंगी में
खुशी, सुख, प्यार….

पत्नी क्या सोचती होगी
क्या सोचती होगी पत्नी
मेरे बारे में?
यही कि
आये दिन लोगों के घर
टेलीविजन फ्रिज
स्कूटर आ रहे हैं
एक यह हैं कि
रोजमर्रा की चीजों
के लिए भी
लड़पा रहे हैं ।

पत्नी क्या सोचती होगी
क्या सोचती होगी पत्नी
मेरे बारे में?
यही कि
आज के वक़्त में
ईमानदार होना
ग़रीबी और मुखमरी को
बुलावा देना है,
खिलवाड़ करना है
बच्चों के भविष्य के साथ।

पत्नी ऐसे भी सोच सकती है
ऐसे भी सोच सकती है पत्नी
मेरे बारे में
यही कि
दूसरे के मुंह की
रोटी छीनकर
अपना पेट भरना
एक गुनाह है
ईमानदारी पर चलना
एक सच्ची राह है।
यह कि
मेरे बच्चों की भूख में
लाखों बच्चों की भूख शरीक है
पत्नी ऐसे भी सोच सकती है
ऐसे भी सोच सकती है पत्नी
मेरे बारे में……
-रमेशराज

———————————
-मुक्तछंद-
।। आज ।।
वह सुबह-सुबह उठा
उसने पत्नी के सामने
एक वाक्य उछाला-
‘एक कप चाय’
उत्तर में पत्नी के चेहरे से
नदारद थी चीनी की मिठास।
टीन की खाली कट्टी-सा
दिख रहा था
उस वक्त पत्नी का चेहरा।

उसने तकिये के नीचे से
टटोला बीड़ी का बन्डल
एक खीज के साथ
बस कागज का
खाली खोल लगा
उसके हाथ।

पड़ा-पड़ा वह
सुलगाने लगा
माचिस की तीलियां
उसे लगा
जैसे उसकी संवेदनाएं
अब होती जा रही बीडि़यां।

वह बिस्तर से उठा
भिनभिनाते हुए
कुछ-कुछ गुस्से में आते हुए।

वह शौच गया
फिर ब्रश निकाला
और उससे दांत
मांजने लगा
नमक और कोयले से
बने हुए मंजन के साथ।
इस दरमियान
उसे बुरी तरह छीलती रही
कॉलगेट की बात।

उसने बदन पर
कमीज़ डाली
बाहर निकला
और खरीद लाया
आलू-मिर्च की जगह
बीडी का बन्डल
चाय की पत्ती
पाव भर चीनी।

घर आकर उसने
सब्जी का खाली थैला
सौंप दिया पत्नी के हाथ।

वह पुनः
बिस्तर पर लेट गया
इत्मीनान से सिगरेट सुलगाई
पत्नी को चाय के लिए पुकारा
उस वक्त उसे लगा
जैसे उसकी पत्नी का चेहरा
उबले हुए
आलू जैसा हो गया है।
और उसकी आखों में
प्याज का रस
फैल गया है
वह यकायक
मिर्च जैसी तीखी हो गयी है।

बिस्तर पर
वह देर तक न लेट सका
उसे लगा
जैसे वह कर बैठा है
कोई बहुत बड़ा अपराध
वह उठा
और दफ्तर की
तैयारी करने लगा
नल की टोंटी खोलकर
बाल्टी भरने लगा |

उसने साइकिल उठाई
और बढ़ गया
दफ्तर की ओर
उसे
रास्ते भर ऐसा
लगता रहा
जैसे आज दिन-भर
उसका पीछा करता रहा है
उसका घर
सब्जी का थैला
पत्नी का
आलू जैसा
उबला हुआ चेहरा।
-रमेशराज

———————————–
-मुक्तछंद-
।। परकटा परिन्दा।।
आज फिर
लटका हुआ था
पत्नी का चेहरा
फटी हुई धोती
और पेटीकोट की शिकायत के साथ।

आज फिर
बिन चूडि़यों के
सूने-सूने दिख रहे थे
पत्नी के हाथ।

मैंने उसका आदमी
होने का सबूत देना चाहा
सारा इल्जाम
अपने सर लेना चाहा,
मैं बाजार गया और
अपनी अंगूठी बेचकर
धोती-चूड़ी
और पेटीकोट खरीद लाया।
इसके बाद
मैं हफ्तों मुसका नहीं पाया।

आज फिर लटका हुआ था
मेरे बेटे का चेहरा
कॉपी, पेंसिल, किताब
और स्कूलफीस की
शिकायत के साथ,
आज फिर वह
पहले की तरह
कर नहीं रहा था
हंस-हंस कर बात।

मैंने उसे बाप होने का
सबूत देने चाहा
मैं लाला रामदीन के
घर पर गया
और अपनी घड़ी
गिरवीं रख आया।
फिर बाजार से
कॉपी, किताब खरीद लाया,
स्कूलफीस चुका आया।

बच्चे ने पूछा मुझ से
घड़ी के बारे में,
पत्नी ने पूछा मुझ से
अंगूठी के बारे में।
मैंने आदमी और बाप
दोनों का एक साथ
सबूत देना चाहा |
उत्तर में
मेरे होठों पर
एक अम्ल-घुली मुस्कराहट थी
गले में
परकटे परिन्दे जैसी
चहचहाचट थी।
-रमेशराज

———————————
-मुक्तछंद-
।। पति-पत्नी और जि़न्दगी ।।
पूरी शिद्दत के साथ वह ताकती है
सिगरेट-दर-सिगरेट
फूंकते हुए अपने पति को
उसे लगता है कि
उसके पति की अंगुलियों में
सिगरेट नहीं
पूरे परिवार का भविष्य जल रहा है।
उसका मुन्ना
राख-राख हो कर झड़ रहा है
पति की उगलियों के बीच।

अक्सर वह महसूसती है
कि हर बार
दरवाजे पर दस्तक देने के बाद
पोस्टमैन उसके पति की
नौकरी का कॉललेटर नहीं लाता,
बल्कि वह लाता है
कि लिफाफे के भीतर
एक अदृश्य जहर,
जो पति अंगुलियों से होकर
आखों तक फैल जाता है
पूरे शरीर में
लिफाफा खोलने के बाद।

कभी-कभी उसे लगता है
कि उसके पति
सिगरेट नहीं सुलगाते
माचिस की तीली के साथ,
वे जलाते हैं
इन्टरव्यू और कॉललैटर
अपनी डिग्रियां, अपना अस्तित्व
और फिर उगलते हैं
धुंए के छल्लों के साथ
बेरोजगारी की बौखलाहट
मन की घुटन
परिवार की फिक्र।

कभी-कभी उसे यह भी लगता है कि
वह और उसका बच्चा
राखदान के अन्दर पड़े हुए सिगरेट के
अधजले टुकड़े हैं
जिन्हें उसके पति ने
मसल-मसल कर फैंका है हर रात।

वह नहीं जानती कि उसके पति
क्यों पीते है सिगरेट-दर-सिगरेट
क्यों चिल्लाते है सपनों में
श…रा…ब– श–रा–ब…

जबकि वे जानते हैं
कि जब सिगरेट पीते हैं
तो सिगरेट नहीं पीते
सिगरेट उन्हें पीती है।

वह यह भी जानते हैं कि-
इस बेकारी व तंगी की हालत में
ख्बाव के अन्दर जलता हुआ
एक ख्बाव है शराब।

पिछले पाच वर्षों में
सिर्फ वह इतना जान पायी है कि
सिगरेट पीने से शुरू होती है
उसके पति की नौकरी की तलाश
और सिगरेट पर ही आकर
खत्म हो जाती है हर बार।
इसके अलावा
वह और कुछ नहीं सोच पाती है।

पूरी शिद्दत के साथ
वह ताकती है
सिगरेट-दर-सिगरेट
फूंकते हुए अपने पति को।
उसे लगता है कि
उसके पति की अंगुलियों में
सिगरेट नहीं
एक सपना राख हो रहा है
ल…गा… ता…र…
-रमेशराज
—————————————————–
Rameshraj, 15/109, isanagar, Aligarh-202001

Language: Hindi
274 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
गुरु तेग बहादुर जी जन्म दिवस
गुरु तेग बहादुर जी जन्म दिवस
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
नौका विहार
नौका विहार
Dr Parveen Thakur
* बातें व्यर्थ की *
* बातें व्यर्थ की *
surenderpal vaidya
समझ आती नहीं है
समझ आती नहीं है
हिमांशु Kulshrestha
माँ की अभिलाषा 🙏
माँ की अभिलाषा 🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
ख्वाबों में मिलना
ख्वाबों में मिलना
Surinder blackpen
प्रभु श्री राम
प्रभु श्री राम
Mamta Singh Devaa
प्रेम
प्रेम
Rashmi Sanjay
#प्रासंगिक
#प्रासंगिक
*Author प्रणय प्रभात*
भेद नहीं ये प्रकृति करती
भेद नहीं ये प्रकृति करती
Buddha Prakash
♥️♥️ Dr. Arun Kumar shastri
♥️♥️ Dr. Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
लाल रंग मेरे खून का,तेरे वंश में बहता है
लाल रंग मेरे खून का,तेरे वंश में बहता है
Pramila sultan
अमर काव्य
अमर काव्य
Pt. Brajesh Kumar Nayak
देखता हूँ बार बार घड़ी की तरफ
देखता हूँ बार बार घड़ी की तरफ
gurudeenverma198
दर्पण जब भी देखती खो जाती हूँ मैं।
दर्पण जब भी देखती खो जाती हूँ मैं।
लक्ष्मी सिंह
*जय हनुमान वीर बलशाली (कुछ चौपाइयॉं)*
*जय हनुमान वीर बलशाली (कुछ चौपाइयॉं)*
Ravi Prakash
Ajeeb hai ye duniya.......pahle to karona se l ladh rah
Ajeeb hai ye duniya.......pahle to karona se l ladh rah
shabina. Naaz
भेंट
भेंट
Harish Chandra Pande
प्रकृति (द्रुत विलम्बित छंद)
प्रकृति (द्रुत विलम्बित छंद)
Vijay kumar Pandey
Thought
Thought
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
फेसबुक
फेसबुक
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
*हम विफल लोग है*
*हम विफल लोग है*
पूर्वार्थ
कांटों से तकरार ना करना
कांटों से तकरार ना करना
VINOD CHAUHAN
3020.*पूर्णिका*
3020.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
यूंही नहीं बनता जीवन में कोई
यूंही नहीं बनता जीवन में कोई
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
कान्हा भक्ति गीत
कान्हा भक्ति गीत
Kanchan Khanna
चलो माना तुम्हें कष्ट है, वो मस्त है ।
चलो माना तुम्हें कष्ट है, वो मस्त है ।
Dr. Man Mohan Krishna
जितना रोज ऊपर वाले भगवान को मनाते हो ना उतना नीचे वाले इंसान
जितना रोज ऊपर वाले भगवान को मनाते हो ना उतना नीचे वाले इंसान
Ranjeet kumar patre
वो अजनबी झोंका
वो अजनबी झोंका
Shyam Sundar Subramanian
झील बनो
झील बनो
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...