देखता हूँ बार बार घड़ी की तरफ
देखता हूँ बार बार घड़ी की तरफ,
करता हूँ इंतजार अगली सुबह का,
धीरे धीरे चलती सुईयां,
बढ़ा देती है मेरी धङकन,
रोक देती है मेरी सांसें,
कम कर देती है मेरी रफ्तार,
नष्ट कर देती हैं मेरी उम्मीदों के दीप।
लगाता हूँ फोन अपने अजीजों को,
कम करने को तन्हाई मेरी,
जानने को उधर के समाचार,
मगर उठाते नहीं वो फोन मेरा,
तब सो जाता हूँ कुछ विचारों के साथ,
कि कल मिलेगी मुझको शांति,
होगा दर्शन एक नई तस्वीर का।
करीब से निकल जाते हैं होकर अजनबी,
जो मेरे करीबी रिश्तेदार और मित्र,
और तैयार करता हूँ खुद को मैं,
उनसे जाकर मिलने के लिए,
जो है मेरे परिचित और प्रेमी,
जिनसे मिलता रहता हूँ अक्सर मैं,
मगर खोल देता हूँ अपने जूतें,
उनकी मेरे प्रति उदासी देखकर।
सोचता हूँ किसी को बना लूं ,
मैं अपने जीवन का साथी,
लेकिन वो मेरी सूरत नहीं,
मेरी नौकरी-दौलत देखते हैं,
कब बनूंगा मैं इस काबिल,
कब तक इम्तिहान लेगी मेरा,
मेरी जिंदगी और यह दुनिया,
कब आयेगा मेरा अच्छा समय,
देखता हूँ बार बार घड़ी की तरफ।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)