Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Apr 2023 · 4 min read

#प्रासंगिक

#प्रासंगिक-
■ पाँव नहीं तो गति नहीं, बचे नहीं आधार
【प्रणय प्रभात】
ईश्वर की बनाई सृष्टि में सब ईश्वर के अंश हैं। सब एक-दूसरे पर निर्भर, एक-दूजे के पूरक। सभी के बीच कोई न कोई संबंध है, जिसे सह-अस्तित्व के रूप मे मान्य किया जाना कल भी अहम था, आज भी अहम है। कर्म या आर्थिक, सामाजिक स्थिति के आधार पर स्वयं को उच्च या कुलीन मानना किसी का भी हक़ हो सकता है। बावजूद इसके यह अधिकार किसी को भी नहीं, कि वह किसी को निम्न या मलीन माने। सदियों पुरानी कर्म आधारित वर्ण-व्यवस्था के नाम पर मानव-समाज के बीच जात-पात की खाई खोदने के प्रयास निहित स्वार्थों के लिए करने वाले सनातनी सच से जितनी जल्दी अवगत हों, उतना ही बेहतर है। किसी एक वर्ग-उपवर्ग नहीं, समूची मानव-बिरादरी के लिए।
साल चुनावो है और परिवेश तनाव से भरपूर। कुत्सित राजनीति अपनी घिनौनी और सड़ी-गली सोच के साथ नित्य नए प्रपंच गढ़ने और इंसानी समाज के मत्थे मढ़ने में जुटी है। जिसके कुचक्र में आने से कोई ख़ुद को रोकना नहीं चाहता। आने वाले समय के बुरे परिणामों को जानते हुए भी। ऐसे मे आवश्यकता है पारस्परिक घृणा के विरुद्ध प्रेरक माहौल बनाने की। जो छोटे-बड़े, अगड़े-पिछडे के संघर्ष पर स्थायी विराम लगाए। साथ ही यह संदेश जन-जन तक पहुंचाए कि छोटे से छोटे का भी बड़े से बड़ा महत्व है।
जिसे जर्जर व सड़ियल सोच के अनुसार हेय सिद्ध करने का प्रयास समाज को बांटने वाले आज कर रहे हैं, उसकी किसी न किसी मोर्चे पर अपनी अहमियत है। जो सभी के लिए उपयोगी भी है और सम्मान्य भी। इसी समयोचित संदेश को आप तक एक प्रेरक प्रसंग के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा हूँ, आज के जंगल राज मे। इस उम्मीद के साथ कि आप इसके पीछे के मर्म को समझेंगे और धर्म मान कर आत्मसात करते हुए औरों तक भी पहुंचाएंगे। ख़ास कर नई पीढ़ी तक, जो अभी जंगली सोच व षड्यंत्र से अनभिज्ञ है, अबोध होने के कारण। तो सुनिए कहानी।
बहुत ही घने जंगल में एक बहुत ही सुंदर बारहसिंघा (हिरण) रहता था। जो अपनी लम्बी-लम्बी छरहरी टांगों से समूचे जंगल में उछल-कूद करता फिरता था। उसे सबसे अधिक गर्व अपने सींगों पर था, जो बेहद सुन्दर थे। तालाब के जल में अपने सींगों और सुंदर चेहरे की छवि निहारना और मुग्ध होना उसका रोज़ का काम था। यही वो समय होता था, जब उसे पानी में अपने पैरों का भी प्रतिबिंब दिखाई देता था। जलाशय के किनारे को कीचड में सन जाने की वजह से गन्दे हो जाने वाले पैर उसे कुरूप प्रतीत होते थे। वह उन्हें अपनी सुंदरता पर ग्रहण मान कर कोसने लगता था। सोचता था कि यह गन्दे पैर उसके सारे सौन्दर्य को बिगाड़ रहे है। अपने सींगों, आंखों और मुख सहित रूप-रंग पर गर्वित हिरण अपने पैरों से घृणा करने का आदी हो चुका था।
एक दिन पानी पीते समय उसे किसी हिंसक जीव के आने का आभास हुआ। वो सतर्क होकर भाग पाता, उससे पहले हो एक बाघ सामने आ गया। बारहसिंघा जान बचाने के लिए पलट कर उल्टे पैर भागने लगा। बाघ भी उसका पीछा करने लगा। कुलाँचे भरते हुए भागने के बाद भी बाघ उसका पीछा छोड़ने को राज़ी नहीं था। इसी दौरान उसे सामने एक घनी झाड़ी दिखाई दी। वो बाघ को चकमा देने के लिए घनी झाडी में घुस गया। प्राण बचाने की इसी हड़बड़ी में उसके काँटेदार सींग सघन झाड़ी में उलझ गए। उसके प्राण अब बुरी तरह संकट में घिर चुके थे। मौत उसे पास खड़ी दिख रही थी।
सिर को झटके देने व पूरा जोर लगाने के बाद भी वो असमर्थ था। ना आगे जा पा रहा था, ना ही पीछे हट पा रहा था। जैसे-जैसे बाघ के पास आने का आभास हो रहा था, उसकी आंखें भी खुल रही थीं। अब वो सोचने पर विवश था कि जिन पैरों से उसे घृणा थी उन्होंने ही पूरी शक्ति से भाग कर बचने में उसकी मदद की। वहीं जिन सींगों पर उसे गर्व था आज उन्हीं के कारण वो मृत्यु के मुख में जाने की स्थिति में पहुँच गया था।
अब उसे समझ आ रहा था कि उसकी गति, उसकी शक्ति उन पैरों पर निर्भर थी, जिनसे वो मूर्ख अपनी अज्ञानतावश अकारण ही घृणा करने लगा था। आपदाकाल उसे एक बड़े सच से अवगत करा चुका था और अब वो अपने कीचड़ सने पैरों के प्रति कृतज्ञ था। जो उसे बचाकर बाघ से दूर झाड़ी तक लाने व उसकी जान बचाने का माध्यम बने।
संदेश बस इतना सा है कि हमारे समूचे समुदाय या समाज रूपी शरीर का कोई भी हिस्सा कुरूप या महत्वहीन नहीं। यहां प्रसंग में हैं “पैर” जो सबसे नीचे होते हैं। जबकि सत्य यह है कि उनके बिना शरीर की कोई सामर्थ्य नहीं। सोचें तो पाएंगे कि पद (पैर) ही हमारी देह के आधार हैं। हमारी गति के मूल भी। जिनके बिना हम घिसट तो सकते हैं, चल-फिर या दौड़ नहीं सकते। इनके बिना मज़बूत से मज़बूत शरीर खड़े होने की कल्पना तक नहीं कर सकता। ठीक इसी तरह कर्म-आधारित वर्ण व्यवस्था के अनुसार वो वर्ग जिसे हेय माना जाता रहा है, गौण नहीं है। नहीं भूलना चाहिए कि शरीर का सर्वोच्च अंग शीश भी आशीष पाने के लिए चरणों मे ही नत होता है। समय आह्वान करता है, इस बड़े सत्य को जानने, मानने और स्वीकारने का।।
■संपादक■
न्यूज़ & व्यूज़

1 Like · 434 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
पावस में करती प्रकृति,
पावस में करती प्रकृति,
Mahendra Narayan
कर्म-धर्म
कर्म-धर्म
चक्षिमा भारद्वाज"खुशी"
गीत
गीत
Shiva Awasthi
मुख्तसर हयात है बाकी
मुख्तसर हयात है बाकी
shabina. Naaz
पापी करता पाप से,
पापी करता पाप से,
sushil sarna
रंग ही रंगमंच के किरदार है
रंग ही रंगमंच के किरदार है
Neeraj Agarwal
पापा के वह शब्द..
पापा के वह शब्द..
Harminder Kaur
प्रकृति भी तो शांत मुस्कुराती रहती है
प्रकृति भी तो शांत मुस्कुराती रहती है
ruby kumari
कभी एक तलाश मेरी खुद को पाने की।
कभी एक तलाश मेरी खुद को पाने की।
Manisha Manjari
दीवारों की चुप्पी में
दीवारों की चुप्पी में
Sangeeta Beniwal
हमें सलीका न आया।
हमें सलीका न आया।
Taj Mohammad
नज़र बूरी नही, नजरअंदाज थी
नज़र बूरी नही, नजरअंदाज थी
संजय कुमार संजू
गहरी हो बुनियादी जिसकी
गहरी हो बुनियादी जिसकी
कवि दीपक बवेजा
"प्रेम के पानी बिन"
Dr. Kishan tandon kranti
★अनमोल बादल की कहानी★
★अनमोल बादल की कहानी★
★ IPS KAMAL THAKUR ★
*हुआ गणेश चतुर्थी के दिन, संसद का श्री गणेश (गीत)*
*हुआ गणेश चतुर्थी के दिन, संसद का श्री गणेश (गीत)*
Ravi Prakash
💐प्रेम कौतुक-547💐
💐प्रेम कौतुक-547💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
रावण का परामर्श
रावण का परामर्श
Dr. Harvinder Singh Bakshi
नींद कि नजर
नींद कि नजर
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
Life
Life
C.K. Soni
......मंजिल का रास्ता....
......मंजिल का रास्ता....
Naushaba Suriya
* खुशियां मनाएं *
* खुशियां मनाएं *
surenderpal vaidya
3004.*पूर्णिका*
3004.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
वक्त नहीं
वक्त नहीं
Vandna Thakur
हम दुनिया के सभी मच्छरों को तो नहीं मार सकते है तो क्यों न ह
हम दुनिया के सभी मच्छरों को तो नहीं मार सकते है तो क्यों न ह
Rj Anand Prajapati
और प्रतीक्षा सही न जाये
और प्रतीक्षा सही न जाये
पंकज पाण्डेय सावर्ण्य
शब्दों मैं अपने रह जाऊंगा।
शब्दों मैं अपने रह जाऊंगा।
गुप्तरत्न
25 , *दशहरा*
25 , *दशहरा*
Dr Shweta sood
अधूरा नहीं हूँ मैं तेरे बिना
अधूरा नहीं हूँ मैं तेरे बिना
gurudeenverma198
मेरा नसीब
मेरा नसीब
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
Loading...