मीलों का सफर तय किया है हमने
मीलों का सफर तय किया है हमने ,
अब हल्के हल्के मुकाम नजर आते हैं !
मंजिल हल्की-हल्की सी दिखती है
लेकिन राहों में तूफान नजर आते हैं !
कई चट्टानों से टकराए हैं हम राहों में,
मस्तक पर कई निशान नजर आते हैं !
गैरों के दिल में हलचल सी है थोड़ी
ये अपनों के ही काम नजर आते हैं !
जीवन सींचा हमने बालू के स्तूपों से
इसमें हवाओं के नाम नजर आते हैं !
इतनी ठोकर पर हम मुकम्मल खड़े हैं
यह उस रहबर के पैगाम नजर आते हैं !
दीवारें कुछ भी नहीं बताती किसी को ,
यह अपनों के ही कान नजर आते हैं !
✍कवि दीपक सरल