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22 Jun 2024 · 1 min read

लाख संभलते संभलते भी

लाख संभलते संभलते भी
उलझते चले गए हम
ख्वाहिशें की थीं
गुलों की हमने
कांटों में उलझते गए हम

हिमांशु Kulshrestha

2 Likes · 262 Views
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