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12 Jul 2020 · 1 min read

मिलन

मिलन
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एक नदी के हम दो तट हैं
मिलना कैसे सम्भव है।
तन्हा बहती नदिया जब तक
अपना मिलन असम्भव है।

बीच हमारे बहतीं पल-पल
दुनियाँ की नश्वर रस्में ।
रोज नया नित पाठ पढ़ाकर
खूब खिलाती आ कसमें।.

कसमों के संग बहते जाना
मानो अपना धर्म यही।
तूफानों सँग लड़ते जाना
साथी अपना कर्म यही।

दर्द सदा पनपेगा दिल में
जब तक मन की मानोगे।
रूह मिलन की ख़ातिर जब तक
जंग न दिल से ठानोगे।

मन से युद्ध करो जा पहले
फिर मिलने की बात करो।
सतगुरु मौला रब प्रीतम का
बैठ हिया से जाप करो।

वो सागर सा बाँह पसारे
रोज प्रतीक्षा करता है।
तेरी मेरी करतूतों पर
नज़र सदा वो धरता है।

तोड़ जहाँ की रस्में सारी
आओ रब से इश्क़ करें।
दीप जला दर-दर उल्फ़त का
मिलन रुहों का फ़िक्स करें।

जिस पल राह पकड़ उल्फ़त की
अपना कदम बढ़ाओगे।
याद सदा रखना साहिल तुम
‘माही’ में खो जाओगे।

✍✍✍✍
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’

Language: Hindi
4 Likes · 4 Comments · 435 Views
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