मां
मां
कौन है दुनिया में भला मां से बढ़कर
एहसान करती है नौ महीने तुम्हें कोख में रखकर यहीं से एक पवित्र रिश्ते की शुरुआत होती है।
करवट लेता है पेट में बच्चा तो पीड़ा मां को होती है
बहुत कष्ट से फिर एक दिन वह जन्म बच्चे को देती है
देखकर औलाद की सूरत धरती की देवी खुश हो लेती है।
बचपन हमारा तेरा कर्जदार बन गया
चाहे जितना भी डगमगाया बचपन
तेरी लोरियां और थपकी उसका उपचार बन गया।
छोटे-छोटे हाथ जब तेरी उंगली को पकड़ आगे बढ़ने लगे बढ़ते बढ़ते ही जाने कितनी गलतियां करने लगे
गलती से तेरा हाथ कभी छूट जाने पर तू यूं हड़बड़ा जाती थी
जैसे बिन पानी के मछली तड़प जाती थी।
हमारे खातिर मां तूने अपनी जिंदगी धुआं धुआं कि
कभी मंदिर टेका माथा
तो कभी मस्जिद में दुआ की ।
वह तेरा काला टीका और तेरी दही की कटोरी जिंदगी में हमें जीत दिला गई
हैसियत ना थी हमारी इतना कुछ पाने की
यह दुआएं ही थी तेरी जो हमारे काम आ गई।
हमें खड़ा करने में मां तू कई बार टूटी है
हमें खिलाती थी स्वादिष्ट पकवान और तेरे पेट से गरम रोटी भी रही रूठी है ।
अपनों ने जिंदगी में समय-समय पर कई छल दिए हैं
पर मां तू ही एक ऐसा पेड़ है
जिसने पत्थर पड़ने पर भी मीठे फल दिए हैं
अब तो लगता है मां यह दुनिया तेरे आंचल से छोटी है ।
तेरी दुआओं का है नतीजा
जो खा रहे आज मेहनत की रोटी है
काम करते-करते थक जाती है
उम्र के साथ-साथ रीड की हड्डी दर्द से करहाती है पर ना कभी दर्द का एहसास हमें होने देती है।
पहले बेटे बेटियों को संभालती थी
अब पोते पोतियों को खिलाती है
कभी मुंह से आह ना कि जिसने
सब की ओर ध्यान दिया
पर खुद की परवाह ना कि जिसने
ऐसी कृपा निधान गीता और कुरान
धरती का भगवान सिर्फ मां होती है।
स्वरचित कविता
सुरेखा राठी