मां के हाथ में थामी है अपने जिंदगी की कलम मैंने
मां के हाथ में थामी है अपने जिंदगी की कलम मैंने
जब से खुद को पूरे शहर का शहजादा समझता हूं।
मां को मैं समझता हूं अपने हक का वकील यहां..,
जमाने को मैं तमाशा ए अदालत समझता हूं…..।।
✍️कवि दीपक सरल
मां के हाथ में थामी है अपने जिंदगी की कलम मैंने
जब से खुद को पूरे शहर का शहजादा समझता हूं।
मां को मैं समझता हूं अपने हक का वकील यहां..,
जमाने को मैं तमाशा ए अदालत समझता हूं…..।।
✍️कवि दीपक सरल