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30 Nov 2018 · 1 min read

माँ

माँ
पल पल अपने खून से सींचती है ,जो तुमको ।
साँसों को तुम्हारी जो अपनी रफ्तार देती है ।
बीज से शिशु बनने तक, तुमको जो सहेज कर,
अपने में समाऐ, रखती है।
प्रसव पीड़ा सहकर ,जो तुमको दुनिया दिखलाती है।
अपने हिस्से की रोटी जो तुमको,खिलाकर खुश
हो जाती ,वो है माँ।।
हाँ वही माँ जिसे तुम ठुकरा देते हो ।
क्यों की तुम (बेटे) बड़े होकर किसी नारी
को माँ तो बना देते हो ।
“लेकिन तुम माँ के बेटे कभी नही बन पाते।”

~ संगीता दरक “माहेश्वरी”

4 Likes · 14 Comments · 687 Views

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