माँ
कितने मोहक थे वो दिन जब मैं तुम्हारी गोद में थी
न दुख की चिंता, न सुख का आभास नन्ही बाहों में सिमटा था पूरा आकाश
चौफेरे फैला था ममता का उजाला तेरे आँचल में खिला बचपन मतवाला
नशे में झूमती सुनती लोरी, वात्सल्य का लगा होठों पे प्याला
पर कितने वेग से खत्म हुआ वो सफर
कितनी परखार कितनी कठिन बनीं जीवन डगर
सुख संपदा शौहरत यौवन जीवन
पूरा का पूरा ही कोई ले ले मगर लौटा दे वो सुनहरे दिन
मां जब मैं तुम्हारी गोद में थी
अरूणा डोगरा शर्मा
मोहाली