माँ (ग़ज़ल)
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ग़ज़ल
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माँ
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माँ जिधर भी नज़र उठाती है
वो ज़मीं हँसती मुस्कुराती है//१
हर बला दूर ही ठहर जाए
माँ उसे डांट जब लगाती है //२
माँ के कदमों से दूर जाए जो
ज़िन्दगी फिर उसे रुलाती है //३
पास जब मौत आए बच्चों के
तब तो माँ जां पे खेल जाती है //४
जब कभी भूल हमसे हो जाए
माँ ही दामन में तब छुपाती है //५
भूख के साये में न हों बच्चे
खुद को माँ धूप में सुखाती है //६
मुस्कुराहट बनी रहे घर में
घर के सब बोझ माँ उठाती है //९
चैन की नींद वो ही सो पाए
माँ जिसे लोरियाँ सुनाती है //८
मां के दामन में सिर्फ प्यार भरा
प्यार ही प्यार वो लुटाती है //९
चोट खाता क़मर कहीं भी जब
लब पे तब सिर्फ़ माँ ही आती है//१०
— क़मर जौनपुरी
( क़मरुद्दीन शेख, जौनपुर, उत्तर प्रदेश )