Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Apr 2017 · 5 min read

रमेशराज की गीतिका छंद में ग़ज़लें

|| गीतिका छंद में ग़ज़ल ||
उर्दू में इसकी बहर ….फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलुन
…………………………………………………………….
सादगी पै, दिल्लगी पै, इक कली पै, मर मिटे
दोस्ती की रोशनी पै, हम खुशी पै, मर मिटे।
फूल-सा अनुकूल मौसम और हमदम ला इधर
प्यार की इकरार की हम चाँदनी पै मर मिटे।
हम मिलेंगे तो खिलेंगे प्यार के मौसम नये
हम वफा की, हर अदा की, वन्दगी पै मर मिटे।
रूप की इस धूप को जो पी रहे तो जी रहे
नूर के दस्तूर वाली हम हँसी पै मर मिटे।
फिर उसी अंदाज में तू ‘राज’ को आवाज दे
नैन की, मधु बैन की हम बाँसुरी पै मर मिटे।
+रमेशराज

|| गीतिका छंद में ग़ज़ल ||
उर्दू में इसकी बहर ….फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलुन
…………………………………………………………….
नैन प्यारे ये तुम्हारे, चाँद-तारे-से प्रिये।
इस लड़कपन, बंक चितवन में इशारे-से प्रिये!
प्यास देते, आस देते, खास देते रससुध
हैं अधर पर सुर्ख सागर के नजारे-से प्रिये।
होंठ हिलते तो निकलते बोल मिसरी में घुले
नाज-नखरों से भरे अंदाज प्यारे-से प्रिये।
रूप की ये धूप पीकर हो गये हम गुनगुने
और क्या इसके सिवा हम लें तुम्हारे से प्रिये।
पास आओ, मुस्कराओ, मत जताओ बेरुखी
दर्द अपने और सपने हैं कुँआरे-से प्रिये।
रात बीते, बात बीते गम-भरी ये तम-भरी
आप आयें, मुस्करायें, दे उजारे-से प्रिये।
+रमेशराज

|| गीतिका छंद में ग़ज़ल ||
उर्दू में इसकी बहर ….फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलुन
…………………………………………………………….
प्यार के, इकरार के अंदाज सारे खो गये
वो इशारे, रंग सारे, गीत प्यारे खो गये।
ज़िन्दगी से, हर खुशी से, रोशनी से, दूर हम
इस सफर में, अब भँवर में, सब किनारे खो गये।
आप आये, मुस्कराये, खिलखिलाये, क्यों नहीं?
नित मिलन के, अब नयन के चाँद-तारे खो गये।
ज़िन्दगी-भर एक जलधर -सी इधर रहती खुशी
पर ग़मों में, इन तमों में सुख हमारे खो गये।
फूल खिलता, दिन निकलता, दर्द ढलता अब नहीं
हसरतों से, अब खतों से सब नज़ारे खो गये।
तीर दे, कुछ पीर दे, नित घाव की तासीर दे
पाँव को जंजीर दे, मन के सहारे खो गये।
+रमेशराज

|| गीतिका छंद में ग़ज़ल ||
उर्दू में इसकी बहर ….फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलुन
…………………………………………………………….
एक जलती रेत के इतिहास का मैं गीत हूँ
हो सके तो तृप्ति दे दो, प्यास का मैं गीत हूँ।
आज चुन ले खूब मोती भोर की पहली किरन
रात-भर की ओस-भीगी घास का मैं गीत हूँ।
मैं कहानी पतझरों की अब किसी से क्यों सुनूँ
तू मुझे महसूस कर, मधुमास का मैं गीत हूँ।
तू परिन्दे की तरह मिलने कभी तो मीत आ
दूर तक फैले हुए विश्वास का मैं गीत हूँ।
लय समय की, बात जय की, सुन रहा, मैं बुन रहा
आस का, उल्लास का, मधुप्रास का मैं गीत हूँ।
+रमेशराज

|| गीतिका छंद में ग़ज़ल ||
उर्दू में इसकी बहर ….फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलुन
…………………………………………………………….
होंठ अपने प्यास से जलते अँगारे ओ नदी
ला हमारे पास जल के आज धारे ओ नदी!
एक पल रुककर जरा हमसे कभी तू बात कर
हम खड़े हैं पेड़-से तेरे किनारे ओ नदी!
आज मन के पास में हैं सिर्फ जर्जर कश्तियाँ
और तूफाँ से भरे तेरे इशारे ओ नदी!
तू मधुर थी हर तरह से, आज तुझको क्या हुआ?
आचरण तेरे नहीं थे सिर्फ खारे ओ नदी!
हम पिघलकर बर्फ से झरना हुए, तुझ में मिले
तू भले ही अब न कर चर्चे हमारे ओ नदी!
आज जब इस ज़िन्दगी को तू डुबोकर ही रही
कौन तट को या कि पनघट को पुकारे ओ नदी!
+रमेशराज

|| गीतिका छंद में ग़ज़ल ||
उर्दू में इसकी बहर ….फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलुन
…………………………………………………………….
पत्थरों ने मोम खुद को औ’ कहा पत्थर हमें
प्रेम में जज़्बात के कैसे मिले उत्तर हमें।
आप कहते और क्या जब आपने डस ही लिया
अन्ततः कह ही दिया अब आपने विषधर हमें।
इस धुए का, इस घुटन का कम सताता डर हमें
तू पलक थी और रखती आँख में ढककर हमें।
साँस के एहसास से छूते कभी तुम गन्ध को
आपने खारिज किया है आँख से प्रियवर हमें।
आब का हर ख्वाब जीवन में अधूरा रह गया
देखने अब भी घने नित प्यास के मंजर हमें।
+रमेशराज

|| गीतिका छंद में ग़ज़ल ||
उर्दू में इसकी बहर ….फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलुन
……………………………………………………………………………
नैन ये दिन-रैन जलधर , तर तुम्हारे प्यार में
प्यार के मंजर बने खंजर तुम्हारे प्यार में।
आपने ये मन दुःखाया, दिल जलाया रात-दिन
हम जहर पीकर, रहे जीकर तुम्हारे प्यार में।
जर्द चेहरा और गहरा घाव अपने वक्ष में
अब कहाँ नित मीत अमरित स्वर तुम्हारे प्यार में।
कौन बोले, बात खोले, अब टटोले उलझनें
बस अपरिचय, मौन की लय गर तुम्हारे प्यारे में।
नूर का दस्तूर अब तो दूर हरदम ‘राज’ से
हम जिये, तम-सा लिये अक्सर तुम्हारे प्यार में।
+रमेशराज

|| गीतिका छंद में ग़ज़ल ||
उर्दू में इसकी बहर ….फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलुन
………………………………………………………..
हम दहें, कितना सहें, इस एकतरफा प्यार को
वो वफा जाने न माने, सिर्फ ताने रार को।
बेकली में नित जली पगली हमारी ज़िन्दगी
नैन बरसे, खूब तरसे यार के दीदार को।
दीप की बाती जलाते, वो निभाते दोस्ती
दूर करते, नूर करते वे कभी अँधियार को।
अब लबे-दम ज़िन्दगी है, आँख भी है बे-रवाँ
क्या दवा दें या हवा दें, इस दिले बीमार को।
हम गुलेलें, रोज़ झेलें, खेल खेलें प्रीति का
‘राज’ की परवाज घायल, मन विकल अभिसार को।
+रमेशराज

|| गीतिका छंद में ग़ज़ल ||
उर्दू में इसकी बहर ….फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलुन
…………………………………………………………….
पीर ही तकदीर बनकर, गर रहे तो क्या करें?
नैन में जलधर अगर अक्सर रहे तो क्या करें?
गर सुमन ही, दे जलन ही ज़िन्दगी-भर को हमें
मोम बनकर, मन पिघलकर, तर रहे तो क्या करें?
प्रीति की हर रीति कातिल, दिल बचे ये किस तरह?
साँस में अब फाँस कसके, ज्वर रहे तो क्या करें?
हैं इधर मन के स्वयंवर, साज-स्वर झंकृत सभी
गर उधर संवदेना पत्थर रहे तो क्या करें?
चाह प्रतिपल, बन कमलदल मुस्कराये ‘राज’ की
मौन में पर मीत के स्वर भर रहे तो क्या करें?
+रमेशराज

|| गीतिका छंद में ग़ज़ल ||
उर्दू में इसकी बहर ….फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलुन
…………………………………………………………….
एक उलझन में रहे मन, नैन सावन आज भी
प्यार की, अभिसार की हर याद चन्दन आज भी।
आपके स्पर्श का उत्कर्ष स्मृति में जगे
तेज होती, धीर खोती मीत धड़कन आज भी।
पास आकर, मुस्कराकर, बात कहना रस-भरी
दे प्रचुर, सुख-सा मधुर वह बोल-गुंजन आज भी।
आपका ये जाप दे संताप तो हम क्या करें
नित सिहरता, याद करता आपको मन आज भी।
‘राज’ से तुम दूर बनकर नूर का दस्तूर क्यों?
चाहते हम, ये हटे तम, किन्तु अनबन आज भी।
+रमेशराज

|| गीतिका छंद में ग़ज़ल ||
उर्दू में इसकी बहर ….फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलुन
…………………………………………………………….
आज यदि तम और ग़म है कल मिलेंगे फूल भी
प्रीति अनपढ़ और अल्हड़ जाएगी स्कूल भी।
अब भँवर का डर भयंकर है अगर, मन मत सिहर
यह समन्दर का सफर होगा कभी स्थूल भी।
नैन की तलवार से, दीदार से, घायल हुए
यार कातिल? बावरे दिल! यार से मिल भूल भी।
मिल गयी गहरी चुभन मन! ये न उलझन का विषय
क्या हुआ हमने छुआ जो फूल के सँग शूल भी।
‘राज’ उसके लाज चहरे पर दिखी कुछ आज जो
कल खिलेगा प्यार का गुलजार ये आमूल भी।
+रमेशराज

|| गीतिका छंद में ग़ज़ल ||
उर्दू में इसकी बहर ….फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलुन
…………………………………………………………….
आप है जो साथ मेरे ज़िन्दगी-सी रोज है
ज़िन्दगी में रागिनी-सी, बाँसुरी-सी रोज है।
हास भी है, रास भी है, साथ भी है आपका
दीप जैसी, खूब कैसी लौ जली-सी रोज है।
कौन जाये छोड़ के ये, तोड़ के ये मित्रता
खिलखिलायें, मुस्करायें वो खुशी-सी रोज है।
नैन प्यारे, बैन प्यारे, रूप जैसे धूप है
रात को भी दूध जैसी चाँदनी-सी रोज है।
‘राज’ प्यारी है हमारी रीति सारी आपसी
प्रीति कैसी, जादुई-सी, या रुई-सी रोज है।
+रमेशराज
———————————————-
रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़

323 Views

You may also like these posts

- तुमसे प्यार हुआ -
- तुमसे प्यार हुआ -
bharat gehlot
25. Dream
25. Dream
Ahtesham Ahmad
*वर्षा आई ऑंधी आई (बाल कविता)*
*वर्षा आई ऑंधी आई (बाल कविता)*
Ravi Prakash
बाबा मुझे पढ़ने दो ना।
बाबा मुझे पढ़ने दो ना।
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
सत्य का अन्वेषक
सत्य का अन्वेषक
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
रिश्ते निभाने के लिए,
रिश्ते निभाने के लिए,
श्याम सांवरा
सच,मैं यह सच कह रहा हूँ
सच,मैं यह सच कह रहा हूँ
gurudeenverma198
चाॅंद
चाॅंद
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
आज भी
आज भी
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
जन्मदिन विशेष :
जन्मदिन विशेष :
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
कड़वा बोलने वालो से सहद नहीं बिकता
कड़वा बोलने वालो से सहद नहीं बिकता
Ranjeet kumar patre
पितृ पक्ष व् तर्पण।
पितृ पक्ष व् तर्पण।
Shashi kala vyas
"दरवाजे पर नव-वर्ष"
Dr. Kishan tandon kranti
भरम
भरम
Shyam Sundar Subramanian
हद
हद
Ajay Mishra
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
4720.*पूर्णिका*
4720.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
**मन मोही मेरा मोहिनी मूरत का**
**मन मोही मेरा मोहिनी मूरत का**
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
...
...
*प्रणय*
प्रेम भरी नफरत
प्रेम भरी नफरत
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
मदर इंडिया
मदर इंडिया
Shekhar Chandra Mitra
HAPPINESS!
HAPPINESS!
R. H. SRIDEVI
मैं बेबस सा एक
मैं बेबस सा एक "परिंदा"
पंकज परिंदा
मौसम में बदलाव
मौसम में बदलाव
सुशील भारती
सच्चे होकर भी हम हारे हैं
सच्चे होकर भी हम हारे हैं
नूरफातिमा खातून नूरी
मतदान कीजिए (व्यंग्य)
मतदान कीजिए (व्यंग्य)
सत्यम प्रकाश 'ऋतुपर्ण'
*इश्क़ की आरज़ू*
*इश्क़ की आरज़ू*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
हम सनातन वाले हैं
हम सनातन वाले हैं
Shyamsingh Lodhi Rajput "Tejpuriya"
💪         नाम है भगत सिंह
💪 नाम है भगत सिंह
Sunny kumar kabira
विचार-विमर्श के मुद्दे उठे कई,
विचार-विमर्श के मुद्दे उठे कई,
Ajit Kumar "Karn"
Loading...