Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
26 Apr 2024 · 1 min read

साया

साया

अब हर बात से
डर लगता है मुझको
मेरा ही साया
डसता है मुझको
मेरी ही नींद
बेचैन करती है मुझको
हर पल एक अनजाना
भय घेरे रहता है मुझको।

खुद से ही अब मैं
रुठी रुठी सी रहने लगी हूँ
कितना भी मग्न हो लूँ खुद में
मगर बेमग्न सी मै दिखने लगी हूँ।

विचलित सी मेरी काया
बेरुखी सी मेरी बातें
अनसुनी सी कितनी आहटे
प्यासी सी मेरी नज़र
न जाने किस कशमकश
में गुम रहने लगी हॣॅ।

आजकल कुछ रास नहीं आता
यूँ घूमना फिरना भी
मन को नहीं भाता
अपना यह दर्द किसी को
सुनाया भी नहीं जाता
जिंदगी के किस रंजो ग़म
में मैं रहने लगी हूँ
खुद से ही अक्सर
बातें करने लगी हूँ ।

हरमिंदर कौर, अमरोहा उत्तर प्रदेश

Loading...