महाराणा प्रताप
भारत देश महान हमारा,
क्योंकि भूमि है वीरों की।
बलिदान धैर्य व त्याग भरा,
है स्वर्ण कथा शमशीरों की।
महाराणा था अतुलित योद्धा,
अद्भुत सी शौर्य कहानी थी।
शक्ति अदम्य भरी राणा में,
उसके बल की न सानी थी।
राणा के जैसा योद्धा था,
चेतक नामक अद्भुत धोड़ा।
जब जैसे जहाँ जरूरत हो,
रन में राणा वैसे मोड़ा।
गति सरपट थी वायु समान,
चेतक छलांग में निराला था।
एक बार युद्ध में पार किया,
सन्मुख जो भारी नाला था।
प्रताप का कवच बहत्तर का,
इक्यासी किलो का था भाला।
किलो पचपन की थी ढाल खडग,
लेकर चलता चेतकवाला।
क्षत्रिय वंश में जन्म लिया,
पित उदयसिंह माँ,जसवन्ता।
निज मातृभूमि के मान हेतु,
राणा था दुश्मन का हन्ता।
‘कीका’ था नाम लड़कपन का,
माँ बाप का राज दुलारा था।
छत्तीस की आयु में राजा बन,
शासन का काम संवारा था।
स्वाभिमान प्रिय था राणा को,
पराधीनता कभी न स्वीकारा।
अपनी मिट्टी के कुशल हेतु,
जाने कितने वैरी मारा।
दिल्ली के शासक अकबर में,
विस्तारवाद की नीती थी।
भारत के लघु राजाओं को,
सम्मलित कर किया अनीती थी।
मेवाड़ पर नजर थी अकबर की,
छल बल रण से हथियाना था।
लेकिन जब तक राजा राणा,
दुष्कर मेवाड़ को पाना था।
कई बार युद्ध हुआ मुगलों संग,
संघर्ष सदा चलता ही रहा।
राणा प्रताप ऐसा योद्धा ,
दुश्मन ललकार न कभी सहा।
महादेव भक्त था महाराणा,
आचार नियम पर अडिग सदा।
रण में जीती जितनी बेगम,
कटु दृष्टि थी डाली नहीं कदा।
सम्मान साथ वापस भेजा,
जितनी भी थी मुगली नारी।
सम्राट की शान अनोखी थी,
अकबर होता था आभारी।
आखिर दुश्मनी चरम पहुँची,
हल्दीघाटी बनी समर धरा।
अकबर की सेना के आगे,
राणा प्रताप हुंकार भरा।
पंद्रह छिहत्तर तीस मई,
हल्दीघाटी बदली छाई।
तुर्की सेना के बरख़िलाफ़
मेवाड़ फौज लड़ने आई।
थे लाख सिपाही अकबर के,
प्रताप ओर बस दो सौ शतक।
क्षत्रियों का जज्बा ऐसा था,
कम साधन में लड़ते थे अथक।
मुगलों के दांत किये खट्टे,
जितने आये लड़ने सारे।
राणा के वीर बांकुरों ने,
कितने मुगली सैनिक मारे।
पर आई विषम परिस्थिति थी,
इस ओर बचा साधन थोड़ा।
प्रताप ने शक्ति जुटाने को,
कानन की ओर अश्व मोड़ा।
रह गयी लालसा धरी सकल,
अकबर न कर पाया बन्दी।
राणा ने पानी फेर दिया,
जो अरि की नीति बनी गन्दी।
तृण तिनकों की रोटी खाई,
खुद को वन में तैयार किया।
निज आन बान सम्मान प्रिय,
स्वदेश को सदैव प्यार दिया।
राणा आजाद रहेगा सदा,
परबसता नहीं स्वीकरेगा।
प्रताप का केवल एक प्रण था,
अकबर को तुर्क पुकारेगा।।
संधर्ष अनवरत बना रहा,
भीलों संग छद्म युद्ध सीखा।
कई बार प्रताप की जंग देख,
अकबर हैरान लगा दीखा।
प्रताप सखा दानी भामा
मजबूत किया मोहरें देकर।
फिर क्या था राणा युद्ध किया,
ठहरा था रजधानी लेकर।
कई युद्ध के घाव बदन पर थे,
राणा की देह बयान दिया।
उनतीस जनवरी सत्तानवे,
प्रताप जगत से पयान किया।
इस देशभक्त की उपमा में,
दुश्मन झुक मान बढ़ाते हैं।
प्रताप जयंती पर हम सब,
श्रद्धा के सुमन चढ़ाते हैं।
सतीश सृजन, लखनऊ