जिस दिन से बिटिया रानी - डी के निवातिया
एक ऐसी रचना जो इस प्रकार है
कुछ बातें हमें वक्त पर छोड़ देना चाहिए क्योंकि खुद ही वह व
लोकतंत्र की आड़ में तानाशाही ?
तुम्हारा मन दर्पण हो,वत्स
एक उम्र बहानों में गुजरी,
पलक झपकते हो गया, निष्ठुर मौन प्रभात ।
फर्क केवल हमे तर्क से पड़ता है नही तो ये अंधविश्वास बेड़ागर्
स्वामी विवेकानंद जी ने सत्य ही कहा था कि "एक हिन्दू अगर धर्म
देखा प्रिय में चांद को, ज्यों ही हटा नकाब